मौत से खिलवाड़
मैदान अगर सपाट हो तो
बोझिल लगने लगता है रास्ता
और कंटीले पथ पर चलूं तो
पैर लहूलुहान हो जाते हैं।
कई बार लौट चुका हूं मौत के कगार से
पर बार-बार खींचता है उसका आकर्षण
जानता हूं कि तनी रस्सी पर
चलने के समान है यह
पर तभी महसूस होता है कि जीवित हूं
मृतप्राय सा लगता है
चुनौतीविहीन जीवन
इसलिये आमंत्रित करता हूं
खुद ही विपत्तियों को
होता हूं लहूलुहान
झुलसता हूं बंजर रेगिस्तान में
खिलवाड़ करता हूं मौत से।
रचनाकाल : 7 मार्च 2020
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