कुटिल एकता
अभी-अभी बात कर रहे थे वे एकता की
और बल्लियों उछल पड़ा था मेरा मन,
खुशी से
कई सालों से त्रस्त है मेरा गाँव, गुटबंदी से
राजनीति की कुटिल चालों ने
खत्म कर दिया है भाईचारा
मेरे गाँव छोड़ने का
यह भी एक कारण था।
शहरों में अजनबी थे लोग
नहीं पहचानते थे पड़ोसी को भी
पर यहाँ तो पीढ़ियों की
जान-पहचान के बावजूद
लोग दुश्मन थे एक-दूसरे के
इसीलिये जब बात सुनी एकता की
तो खुशी से फूला नहीं समाया मैं
और बनाने लगा योजना, गाँव लौटने की
सख्त जरूरत थी यहाँ मेरी
गरीबी थी, अशिक्षा थी
रूढ़िवादिता थी
दूर कर इन सबको
लानी थी जागरूकता, वैज्ञानिक चेतना।
नहीं कर पाया था यह सब अभी तक
तो सिर्फ इसलिए
कि बिना सहयोग सबके
सम्भव नहीं था यह
इसीलिए आज जब
एकता की बात सुनी
खुशी बेतहाशा हुई।
देर नहीं लगी पर
काफूर होते इसे
पाया जब इसमें
आभास षड्यंत्र का
कुटिल थी यह एकता।
चुनाव नजदीक थे
परास्त करने तीसरे को
हो रहे थे एकजुट वे
कराने को मेलजोल
सहमत थे दोनों गुट
मेरे ही नाम पर
मंजूर मुझको पर
नहीं थी यह एकता
चला आया चुपचाप
छोड़कर सबको अवाक
बैठक से उठकर
करने लगा तैयारी
लौटने को फिर से
अजनबी लोगों के बीच।
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