पटकथा का अंत
शर्मिंदा हूं कि नहीं बना पाया
अपने हिस्से की दुनिया को सुंदर
करता ही रह गया शिकायतें
निकालता ही रहा मीन-मेख
और गुजर गया जीवन!
नहीं, खत्म नहीं हुआ है सब कुछ
कर सकता हूं अभी भी बहुत कुछ
न सही निर्दोष, निष्कलंक
पर मिटा सकता हूं बहुत से दाग
इतनी बेहतर तो बना ही सकता हूं दुनिया
कि अगली पीढ़ी को वह मैली न लगे
मिल सके स्वच्छ कैनवास उसे
भरने के लिए अपने हिस्से का रंग
भले नहीं कर पाया अच्छी शुरुआत
पर अभी भी मेरे बस में है
अपने मनमुताबिक करना
पटकथा का अंत।
रचनाकाल : 29 अप्रैल 2020
Comments
Post a Comment