सही दिशा


कठिन तो बहुत है रेगिस्तान की यात्रा
झुलसा रही है धूप और
कांटे कर रहे लहूलुहान
किंतु बीच-बीच में आते हैं इतने मनोरम दृश्य
कि भूल जाती है सारी थकान
और भर जाता है मन अवर्णनीय उत्साह से
ऐसे ही मौकों पर लगता है
कि चल रहा हूं सही दिशा में
काफी है इतना ही अवलंबन
पार करने के लिये कांटों भरा
निर्जन और बंजर रेगिस्तान
नहीं है समय की चिंता
लग जाये चाहे सारी उम्र
गलत नहीं होगी दिशा तो
पहुंच ही जाऊंगा मंजिल तक।
रचनाकाल : 11 मार्च 2020

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