जिंदा होते शब्द


ज्ञान तो वह पा गया था
पर बेहद हल्का लगता था वह
डर लगता था कि उड़ न जाय
कहीं फूंक से भी, जरा सी।
शुरू किया जब उसे
जीवन में उतारना
तो खुल रहे हैं नये-नये अर्थ।
घिसे-पिटे लगते थे शब्द कई
कविताएँ बासी सी लगती थीं
ढूँढ़ता ही रहता था
नये-नये शब्द, जो दें ताजगी।
लेकिन जब शुरू किया
जीना उन शब्दों को
लगते थे जो घिसे-पिटे
चमकने लगे हैं अब वे
हीरे और मोतियों से।

होता महसूस अब यह
शब्दों ने पाये हैं अर्थ जो
सिर्फ उन्हें इस्तेमाल करता था
थोथा रह जाता था इसीलिये
छू नहीं पाती थीं
कविताएँ मन को।
जीता हूँ पहले अब शब्दों को
उसके बाद इस्तेमाल करता हूँ
लगती हैं जीवित अब कविताएँ।

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