उदासीनता
नौकरी तो बढ़ गई
साल भर के लिये फिर
तनख्वाह भी बढ़ी है ठीकठाक
फिर क्यों उदास है मन?
भुनभुना रहे हैं लोग
व्यक्त कर रहे अपना असंतोष
वृद्धि नहीं हुई जिनकी खास कुछ।
अव्वल होकर भी अपने साथियों में
खुशी लेकिन हो रही मुझे न क्यों?
पढ़ता हूँ रोज गीता
कर रहा अभ्यास अनासक्ति का
लेकिन उदासीनता तो
होता नहीं अर्थ अनासक्ति का!
छाया फिर विषाद क्यों?
क्या यह परछाईं है
साथियों के रोष की?
सबकी उन्नति के बिना
सध नहीं सकती क्या अनासक्ति?
कारण नहीं आता समझ
फिर भी मन उदास है
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