चिट्ठी
बरसों से नहीं लिखी
चिट्ठी किसी को भी
स्मृतियाँ बन रह गये
बचपन के दिन वे.
जानता हूँ लम्बा था
पहले का रास्ता
महीनों लग जाते थे
पाने में हालचाल
चिट्ठी जब मिलती थी
पुरानी हो चुकती थी
खबर हफ्ते-दस दिन
खुशी पर जो मिलती थी
फोन पर कर बात भी
मिलती नहीं आज वह.
होता महसूस ऐसा
बात नहीं कर पाया
बहुत दिनों से अपने आप से.
देख नहीं पाता हूँ आइना
पहचान पाता नहीं खुद को
बनता ही जाता हूँ
अजनबी, खुद से.
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