बिना हथियारों की लड़ाई
जब तक था लैस अस्त्र-शस्त्र से
दूसरों से बेहद डर लगता था
दूसरे भी डरते थे उतना ही
डरता है सांप जैसे मानव से
मानव भी सांप से
दोनों उगलते जहर
होते ही सामना।
लेकिन अनायास ही कल
हो गया जब नि:शस्त्र
फैल गई मुस्कान
दूसरों के चेहरों पर
मेरा भी डर गायब हो गया
अजनबी भी मित्र जैसे बन गए।
अब तो रहता हरदम
ऐसे ही अनारक्षित
बढ़ते ही जाते हैं
दोस्त-भाई दिन-ब-दिन
दुश्मनी बची ही नहीं
व्यर्थ सारे अस्त्र-शस्त्र हो गए
शायद यही थे मेरे
दुश्मन सबसे बड़े।
ख्वाहिश अब होती है
देश भी हमारा अगर
इसी तरह हो जाय नि:शस्त्र
दुश्मनों को डर न लगे हमसे
खत्म सारी दुश्मनी हो जायेगी
रुक सकेगी होड़ हथियारों की
फैलेगा अमन-चैन चहुंओर।
लेकिन आसान नहीं डगर यह
साजिश यह गहरी है
गुंथे हैं निहित स्वार्थ कितने ही
दुश्मन कहीं और नहीं
अपने ही भीतर हैं
लड़ते हैं उनसे जो
कहलाते नक्सली
बनते आतंकवादी।
लड़ना होगा इसीलिये
पहले अपनों से ही
अपना सीना खोल कर
छोड़ सारे अस्त्र-शस्त्र।
बेशक जिंदा हैं अभी
नाथूराम गोडसे
छलनी करेंगे सीना गांधी का
लेकिन थमेगा तभी रक्तपात
आंधी रुकेगी पागलपन की
भीतर के दुश्मन ही
मांगते बलिदान हैं।
जहर खत्म करने का
यही है बस रास्ता
इसीलिये सारे
उतार दिये कवच कुंडल
होकर अनारक्षित
लड़ता हूं अपनों से, नि:शस्त्र
चाहता हूं जीत लूं
मुझको भी जीत लें वे ऐसे ही
एक-दूसरे को यूं ही जीत कर
जीत लें हम दुनिया को
ऐसे ही दुनिया हमको जीत ले
किसी की न हार हो
ऐसी लड़ाई का
है यही बस रास्ता।
दूसरों से बेहद डर लगता था
दूसरे भी डरते थे उतना ही
डरता है सांप जैसे मानव से
मानव भी सांप से
दोनों उगलते जहर
होते ही सामना।
लेकिन अनायास ही कल
हो गया जब नि:शस्त्र
फैल गई मुस्कान
दूसरों के चेहरों पर
मेरा भी डर गायब हो गया
अजनबी भी मित्र जैसे बन गए।
अब तो रहता हरदम
ऐसे ही अनारक्षित
बढ़ते ही जाते हैं
दोस्त-भाई दिन-ब-दिन
दुश्मनी बची ही नहीं
व्यर्थ सारे अस्त्र-शस्त्र हो गए
शायद यही थे मेरे
दुश्मन सबसे बड़े।
ख्वाहिश अब होती है
देश भी हमारा अगर
इसी तरह हो जाय नि:शस्त्र
दुश्मनों को डर न लगे हमसे
खत्म सारी दुश्मनी हो जायेगी
रुक सकेगी होड़ हथियारों की
फैलेगा अमन-चैन चहुंओर।
लेकिन आसान नहीं डगर यह
साजिश यह गहरी है
गुंथे हैं निहित स्वार्थ कितने ही
दुश्मन कहीं और नहीं
अपने ही भीतर हैं
लड़ते हैं उनसे जो
कहलाते नक्सली
बनते आतंकवादी।
लड़ना होगा इसीलिये
पहले अपनों से ही
अपना सीना खोल कर
छोड़ सारे अस्त्र-शस्त्र।
बेशक जिंदा हैं अभी
नाथूराम गोडसे
छलनी करेंगे सीना गांधी का
लेकिन थमेगा तभी रक्तपात
आंधी रुकेगी पागलपन की
भीतर के दुश्मन ही
मांगते बलिदान हैं।
जहर खत्म करने का
यही है बस रास्ता
इसीलिये सारे
उतार दिये कवच कुंडल
होकर अनारक्षित
लड़ता हूं अपनों से, नि:शस्त्र
चाहता हूं जीत लूं
मुझको भी जीत लें वे ऐसे ही
एक-दूसरे को यूं ही जीत कर
जीत लें हम दुनिया को
ऐसे ही दुनिया हमको जीत ले
किसी की न हार हो
ऐसी लड़ाई का
है यही बस रास्ता।
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