मध्य वर्ग का आदमी
मुश्किल तो था न कभी
लिख पाना कविता
ऐसा भी नहीं कि अब
खत्म हो गई हों सारी वजहें
बढ़ती ही जा रही
बल्कि सारी त्रासदी
इतनी हुई अधिकता
कि खबर नहीं बनती अब
किसानों की आत्महत्या
शोषण मजदूरों का।
तरक्की कर रहा देश
टीवी, अखबारों में
नेता, अभिनेता सब
व्यापारी बन गए
सारी जगह छेंक ली
खबरों में न आता कभी
मध्य-निम्न, निम्न वर्ग
कोई नहीं दिखता अब
मरते हुए भूख से
मीडिया की नजरों में।
मुद्दा नहीं लेकिन यह
डर लगता खुद से
मैं भी पथरा गया
हासिल कर नौकरी
जी रहा हूं ठीकठाक
मर रही हैं लेकिन
सम्वेदनाएं।
करने की कौन कहे
मदद मजलूमों की
उबर नहीं पाता हूं
अपनी जरूरतों से
पूरी करते ही एक
दस खड़ी हो जाती हैं.
जानता हूं अच्छी तरह
खुद को बचाने का
फैसला ही गलत था
वंचितों के संग खड़े होने का
रास्ता बस एक था
साथ उनके रह कर ही लड़ना था
तिल-तिल कर मरना था।
लेकिन जुटा न पाया
साहस यह आज तक
जा बैठा दुबक कर
कहलाता मध्य वर्ग।
देखता हूं सपना उच्च वर्ग का
टीवी, अखबारों में
देखता उन्हीं की खबर
उन्हीं जैसा बनने की कोशिश में
जिये चला जाता हूं
अंदर से धीरे-धीरे
बंजर होता जाता हूं।
नहीं अच्छी लगतीं अब
कविता-कहानियां
लुभाते हैं शाहरुख
और सचिन तेंदुलकर।
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