आज हम अपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती मना रहे हैं. उन्हीं गांधी की, जिनके बारे में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कभी कहा था कि ‘आने वाली पीढ़ियां शायद इस बात पर विश्वास नहीं करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ ऐसा कोई व्यक्ति कभी इस धरती पर आया था’. गांधी जैसी अपार लोकप्रियता विरले ही किसी को मिलती है. परंतु उनके जमाने में भी उनके आदर्शों पर चलने वाले कितने लोग थे? खासकर देश को आजादी मिलने की सम्भावना जैसे-जैसे प्रबल होती गई, वैसे-वैसे उनके दिखाए रास्ते से छिटकने वालों की संख्या भी बढ़ती चली गई थी. यहां तक कि जिस कांग्रेस के जरिये उन्होंने आजादी की पूरी लड़ाई लड़ी, उसके कई नेता भी आजादी निकट आने पर उनको पहले जैसी तवज्जो नहीं देते थे. इसे इसी एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि गांधीजी ने कहा था कि देश का बंटवारा मेरी लाश पर होगा, लेकिन बंटवारे में शामिल नेताओं ने, ऐसा करते वक्त उन्हें जानकारी तक देना जरूरी नहीं समझा था. बेशक, गांधीजी कभी नेताओं पर निर्भर नहीं रहे, लेकिन जो जनता कभी उनके पीछे पागल रहती थी, उसने भी उनकी बात सुनना बंद कर दिया था. आखिर जो लोग लाठी-डंडे तो क्या, गो...