वैयक्तिक और सामाजिक
चार जनों के बीच कहीं भी बैठ
हांकना गप्प या कि सुनना उसको
बर्बाद समय अपना करने सा लगता था
महसूस मगर यह हुआ वजह से इसी
रह गया दुनियादारी में सबसे कमजोर
कि लगती गपशप व्यर्थ सरीखी जो
उससे भी हम दुनियादारी की
छोटी-छोटी बातें सीखा करते हैं।
सामाजिक प्राणी मानव को
दरअसल इसी से कहा गया
एकाकी कोई रहे अगर
तो बहुत दिनों के बाद
समझ में आती है अपनी गलती
हम मगर देखते हैं जब औरों की गलती
तो खुद भी सीखा करते हैं।
असमंजस लेकिन यह है
सबको जीवन सीमित मिलता है
यदि समय बिता दें सारा दुनियादारी में
तो कब हम चिंतन-मनन
अध्ययन-लेखन या फिर ध्यान करें?
इसलिये सदा कोशिश करता
संतुलन साध कर चलने की
चर्चा होती दिखती है जहां सकारात्मक
शामिल उसमें हो जाता हूं
रखता हूं खुद को सजग
जहां होता है टाइमपास
वहां से उठ बाहर आ जाता हूं
इस तरह साधता मेल
व्यक्तिगतता में सामाजिकता का।
रचनाकाल : 18 अक्टूबर 2024
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