अमृत और विष

अमृत ऐसा मैं पहले ढूंढ़ा करता था
जो विष के जैसा कर दे असर तुरंत
जिसे पीकर हम मानव
सदा-सदा के लिये अमरता पा जायें।
पर खोज नहीं यह सफल हुई, यह पता चला
विध्वंस जिस तरह पल भर में हो जाता है
विष उसी तरह तत्काल असर कर जाता है
पर सृजन जिस तरह धीरे-धीरे होता है
अमृत भी दीर्घ तपस्या से ही बनता है।
लगता हो भले विचित्र नियम यह ईश्वर का
पर सच है आखिरकार यही
जो चीज नकारात्मक होती
वह पल भर में हो जाती है
मरने में क्षण भर लगता है
जीने में लेकिन पूरा जीवन लगता है
इसलिये विनाशक लोग प्रकृति के होते जो
तत्काल सफलता पाते वे दिख जाते हैं
पर चीज सकारात्मक यदि कोई करनी हो
तो धीरज लम्बा लगता है
हीरा बनने में वर्ष करोड़ों लगते हैं
कोयला मगर जलने में पल भर लगता है।
इसलिये नहीं घबराता हूं विध्वंसों से
रखकर धीरज हर बार सृजन
खण्डहरों में से करता हूं
तप के बल पर विष अमृत में
परिवर्तित होता जाता है।
रचनाकाल : 17 अक्टूबर 2024


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