भीतर का न्याय
नुकसान अगर कुछ हो जाए
तो बिना अनैतिक-नैतिक की चिंता के मैं
भरपाई कर लेने की कोशिश करता था
महसूस मगर यह धीरे-धीरे हुआ
भ्रष्ट मुझको करते जाते हैं गलत तरीके
मैला होता जाता है मन जो
नुकसान बहुत यह पहले से भी ज्यादा है।
इसलिये कहीं कुछ होता है जो भी घाटा
उसको पूरी शिद्दत से सीधे-सीधे ही सह लेता हूं
अनुचित साधन अपनाता हर्गिज नहीं
आत्मबल बढ़ता जो इस प्रक्रिया में
वह मूल्यवान घाटे से ज्यादा होता है।
पहले मुझको लगता था छुपकर करता जो भी काम
नहीं वह पता किसी को चलता है
पर मिला आत्मबल जब कुछ तो यह पता चला
औरों से छुपकर हम चाहे जो करें
मगर अपने मन से तो कभी नहीं वह छिपता है
दे सके अदालत हमें सजा या नहीं
हमारा मन हिसाब सारे कर्मों का रखता है
धोखा देने की कोशिश करें इसे यदि तो
यह नींद हमारी रातों की हर लेता है।
रचनाकाल : 12 अक्टूबर 2024
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