डर भीतर-बाहर का
रक्षा के मद में स्वाहा करना धन अपार
दुनियाभर के देशों की मुझको
नासमझी सी लगती थी
हम न्याय-परायण रहें अगर
तो हमला कोई हम पर करना चाहे तो
दुनिया क्या यूं ही चुप बैठी रह जायेगी?
पर जैसे-जैसे समझ बढ़ी
रह गया देखकर यह अवाक्
अपनी-अपनी आंखों पर सब ही
निहित स्वार्थ की पट्टी बांधे रहते हैं
है उचित और अनुचित क्या यह
वे हानि-लाभ से अपने ही तय करते हैं
वरना तो कारण और नहीं था कोई भी
हमको गुलाम सदियों तक अपना रखने को
जायज ठहरा पाते अंग्रेज कहीं से भी
हम भी अपने जैसे ही कुछ इंसानों को
कह कर अछूत, बदतर उनसे
व्यवहार कभी क्या कर पाते?
इसलिये सभी मानव शायद हम दुनिया में
एक-दूसरे से ही इतना डरते हैं
अपने भीतर के निहित स्वार्थ का
अक्स दूसरों में भी देखा करते हैं
कारण शायद है यही मुख्य
इस दुनिया में अन्यायों-अत्याचारों का
क्या बुद्धिमान प्राणी सबसे इस दुनिया के
हम न्याय-परायण जीव नहीं बन सकते हैं?
रचनाकाल : 25 अक्टूबर 2024
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