जाहि विधि राखे राम...
अनहोनी की आशंका से
मैं डरा-डरा सा रहता था
हर चीज सशंकित करती थी
चिंतित करता था चाल-चलन नई पीढ़ी का
उल्टी विकास की दिशा हमेशा लगती थी।
पर देख जब दुश्चिंता का
कुछ हासिल नहीं निकलता है
तो चिंता करना छोड़ दिया
जो जैसा है स्वीकार उसे वैसा ही कर
आगे अच्छा बनने को प्रेरित करता हूं
खुद को रखता तैयार
बुरी से बुरी परिस्थिति खातिर भी
थोड़ा भी अच्छा होता है
तो खुशी मनाया करता हूं।
पहले लगता था होती है सीमा कोई
अच्छाई और बुराई की
पर समझ गया हूं अब दोनों का
कोई अंत नहीं होता
जीवन में सीमा कोई चरम नहीं होती
इसलिये परिस्थिति चाहे जैसी रहती हो
दीपक की लौ सा सिर ऊपर ही रखता हूं
जितना भी सम्भव हो
अच्छा करने की कोशिश करता हूं।
रचनाकाल : 10 अक्टूबर 2024
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