मैं ही क्यों?

जब असहनीय दु:ख मिलते थे
मैं भी बाकी लोगों जैसे
ईश्वर को कोसा करता था
बाकी लोगों को छोड़
मिला दु:ख देने खातिर मैं ही क्यों?

पर देखा सुख जब लोगों का
तब याद आया मुझको भी तो
सुख मिला कभी था बेशुमार
तब तो ईश्वर से कभी नहीं
पूछा करता था मैं ही क्यों?

इसलिये परिस्थिति चाहे अब जैसी भी हो
ईश्वर की इच्छा मान उसे
खुश हरदम ही रहने की कोशिश करता हूं
मन में उठता है नहीं प्रश्न यह कभी
कि आखिर मैं ही क्यों?
रचनाकाल : 9-11 अक्टूबर 2024

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