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Showing posts from April, 2025

तप बल से दुनिया चलती है

हर चीज पुरानी मुझे सुहानी लगती थी सबसे खराब लगता था अपना वर्तमान चिंता भविष्य की होती थी। पर पढ़ा कहीं जब गीत मधुर जो सबसे ज्यादा होते हैं वे चरम दर्द के क्षण में पैदा होते हैं तब सहसा ही यह लगा मिला है मुझको जो अनुपम मौका क्यों व्यर्थ गंवाता जाता हूं! सह करके चौदह वर्षों का वनवास राम भगवान रूप बन पाये थे हों शिबि, दधीचि या हरिश्चंद्र सब त्याग-तपस्या के बल पर ही अमर हमारी स्मृति में हैं फिर क्यों प्रतिकूल परिस्थिति से मैं डरता हूं सोना जब तप करके ही कुंदन बनता है कोयला दाब सह करके हीरा बनता है फिर क्यों घनघोर परिश्रम से मैं बचता हूं! रचनाकाल : 29 अप्रैल 2025

सृजनात्मकता पर हावी होती सत्ता और अर्थोपार्जन का संकट

 दुनिया के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शामिल हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जिस तरह से झुकाने की कोशिश कर रहे हैं और यूनिवर्सिटी झुकने से इंकार कर रही है, वह दुनियाभर में चर्चा का विषय है. यूनिवर्सिटी की नीतियों को ट्रम्प अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं और यूनिवर्सिटी के नहीं मानने पर उसकी 2.2 बिलियन डॉलर से अधिक की फंडिंग रोक दी है. इतना ही नहीं, हेल्थ रिसर्च से संबंधित और एक अरब डॉलर की फंडिंग भी रोकने की धमकी दी है. कोलंबिया समेत कई अन्य विश्वविद्यालयों की भी फंडिंग रोक कर ट्रम्प ने उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर किया है, लेकिन हार्वर्ड झुकने से इंकार कर रहा है. हो सकता है वह इसलिए भी ऐसा कर पा रहा हो क्योंकि उसके पास 53.2 बिलियन डॉलर का विशाल कोष है, जबकि अन्य अमेरिकी विश्वविद्यालय उसकी तुलना में बहुत कम समृद्ध हैं! लेकिन इस घटनाक्रम ने यह बहस तो छेड़ ही दी है कि राज्य सत्ता पर निर्भर रहते हुए शिक्षा संस्थान उसकी नीतियों से खुद को अलग कैसे रख सकते हैं?  रचनात्मक प्रतिभाओं को सत्ता द्वारा पोषित किए जाने की परंपरा बहुत पुरानी है. कम-अध...

मनुष्यता बढ़ाती कविता

दरबारी लोगों के हाथों जब कविता थी गुणगान किया करती थी वह राजाओं का संतों के हाथों में आकर वह भजन बनी करके प्रहार इससे कुरीतियों पर कबीर लाये समाज में जनजागृति, जड़ता तोड़ी दिनकर जैसे कवियों ने इससे लोगों में भर देशप्रेम का भाव, जगाया स्वाभिमान अद्‌भुत है जैसे भी ढालो कविता वैसे ढल जाती है! मैं इसे बनाकर आत्मनिरीक्षण का माध्यम अपने भीतर की कमियां ढूंढ़ा करता हूं जो लिखता हूं जीने की कोशिश करता हूं बेहतर जितना मैं इसे बनाता जाता हूं बेहतर उतना यह मुझे बनाती जाती है! रचनाकाल : 24-27 अप्रैल 2025

कमजोर पड़ते मानवीय मूल्य और आलोचना का स्थान लेती निंदा

 हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन.रवि को राज्य सरकार के विधेयकों को दबाए रखने के लिए फटकार लगाने के साथ ही, अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए उन विधेयकों को कानून का रूप दे दिया. इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति भी विधेयकों को अनिश्चितकाल के लिए रोक कर नहीं रख सकते हैं. अब कुछ लोगों ने इसको लेकर न्यायपालिका पर पलटवार किया है.   निश्चित रूप से भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा होता है और कोई उन्हें निर्देश दे(चाहे वह अदालत ही क्यों न हो), यह शोभा नहीं देता. लेकिन देश का सर्वोच्च पद होते हुए भी क्या यह बात किसी से छिपी है कि राष्ट्रपति को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह के अनुसार ही काम करना होता है? और सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रपति पर जो टिप्पणी की, क्या वह परोक्ष रूप से केंद्र सरकार पर ही नहीं है?  पलटवार करने वालों ने हाईकोर्ट के एक जज के आवास से जली नगदी मिलने के मामले में एफआईआर दर्ज न होने पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘क्या कानून से ऊपर कोई नई श्रेणी बन गई है, जिसे जांच से छूट मिल गई है?’   दामन अगर साफ हो तो ...

सहज ज्ञान

हैरान रह गया मैं उस दिन जब देखा पेड़ पपीते का घर के पीछे ऊपर बढ़ने पर तिरछा होता जाता है क्या उसे पता है ऊपर छत का छज्जा है? जब तक था वह कमजोर फूल खुद ही उसके झड़ जाते थे मजबूत स्वयं को करके ही फलदार बना क्या जीव चराचर दुनिया के सब सहज ज्ञान में यूं पारंगत होते हैं! कोई भी कल की चिंता करता नहीं मनुष्येतर प्राणी सब सहज भाव से जीते हैं होकर भी लेकर बुद्धिमान सबसे, क्यों हम दुश्चिंताओं के चक्रव्यूह में घिरते हैं? चर-अचर प्राणियो दुनिया के, हे मदद करो हमको भी सहज भाव से जीने का वर दो नुकसान तुम्हें पहुंचाया जो भी, करो क्षमा हम इंसानों को भी खुद में शामिल कर लो!   रचनाकाल : 17 अप्रैल 2025

अपराधियों की बढ़ती कुटिलता से दुनिया में खत्म होती सरलता

 हाल ही में महाराष्ट्र साइबर सेल ने राज्य के कई विभागों की वेबसाइटों पर साइबर हमले की चेतावनी दी है. इसी क्रम में साइबर सेल ने मुंबई समेत पूरे देश में घिबली स्टाइल आर्ट को लेकर एक एडवाइजरी भी जारी की, जिसमें घिबली आर्ट के जरिये भारतीयों का डेटा विदेशी कंपनियों तक पहुंचने और उसके दुरुपयोग की आशंका जताई गई है.  अभी कुछ दिनों पहले ही जापानी एनिमेशन तकनीक कही जाने वाली घिबली का जादू देशभर में आम लोगों के ऐसा सिर चढ़कर बोला कि उनमें अपनी घिबली फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करने की होड़ सी लग गई. हालांकि उस समय भी कुछ लोगों ने आशंका जताई थी कि यह खतरनाक हो सकता है, परंतु लोगों को लगा कि सोशल मीडिया के ढेरों प्लेटफॉर्म्स पर सबकी ढेरों फोटो तो मौजूद हैं, ऐसे में एक घिबली ही उनका क्या बिगाड़ लेगी! लेकिन अब साइबर सेल की एडवाइजरी ने उन्हें सन्न कर दिया है.  विश्वास करना दरअसल मनुष्य का सहज स्वभाव होता है. हर चीज पर हम शंका करने लगें तो शायद जीवन बेहद कठिन हो जाएगा. आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास इतना समय नहीं है कि हर चीज के बारे में पूरी जांच-पड़ताल करे, इसलिए कुछ लोगों के अन...

अहं की लड़ाई

सच समझाने की जब मैं कोशिश करता था कुछ लोग अकारण ही विरोध में हो जाते हैरान हमेशा रह जाता, कुछ कारण समझ न आता था। सहसा ही लेकिन एक तुच्छ सी घटना से महसूस हुआ, कुछ लोगों को यह लगता है सच कहना एक बहाना है, उसके जरिये मैं रौब जमाने की कोशिश में रहता हूं! तब से कुछ कहने से पहले विश्वास जीतने की कोशिश मैं करता हूं लोगों को अपनी बात लगे, मेरा न अहं आड़े आये खुद को पीछे रख, बात इस तरह करता हूं दरअसल लड़ाई दुनिया में लगभग सारी कुछ ठोस कारणों की बजाय, बस अहंकार से होती है लड़ने वाले दोनों पक्षों के लोगों के हथियार एक जैसे ही अक्सर होते हैं। रचनाकाल :  10 अप्रैल 2025

अचानक कुछ नहीं होता

जीवन में ऐसे अवसर आते कई जहां दोराहे पर हम खुद को पाते खड़ा एक निर्णय उस पल का दिशा समूचे जीवन की तय करता है। है नहीं पसंद मुझे सट्टा या जुआ सही सोचा करते थे अल्बर्ट आइंस्टीन कि ईश्वर नहीं खेलता है पांसे फिर जीवन में क्यों हम सबके दोराहे ऐसे आते हैं? दिखता जितना है सरल राह चुन लेना कोई भी शायद उतना आसान नहीं होता क्वांटम में चीजें भले दिखाई दें रैंडम सचमुच में लेकिन नहीं अराजक कुछ होता जो हमें विकल्प नजर आते उनका चुनना भी पहले से तय होता है अपने कर्मों से होते हैं हम बंधे कि मरते समय ‘राम’ कह पाना चाहे लगे बहुत ही सरल मगर अभ्यास न हो जीवन भर का तो सरल दिखाई देता जो दरअसल असम्भव होता है! रचनाकाल : 1-2 अप्रैल 2025

ट्रम्प के टैरिफ को क्या हम बना सकते हैं ‘आपदा में अवसर’ ?

 ट्रम्प के टैरिफ ने इन दिनों पूरी दुनिया के शेयर बाजारों में उथल-पुथल मचा रखी है. ग्लोबलाइजेशन को तो पूरी दुनिया के लिए वरदान माना गया था, फिर उसका रूप इतना डरावना क्यों नजर आ रहा है? भूमंडलीकरण की जब शुरुआत हुई तो पूरी दुनिया खुश थी कि जिस देश में जो सामान सस्ता होगा, उससे पूरी दुनिया लाभान्वित हो सकेगी. चीन ने इससे सबसे ज्यादा फायदा भी उठाया है. लेकिन जिन देशों को व्यापार घाटा हो रहा है, उन्हें अहसास होने लगा है कि सस्ते आयात के चक्कर में तो वे अपने यहां के उद्योग-धंधों को ही चौपट करते जा रहे हैं जिससे लोग बेरोजगार हो रहे हैं!   महात्मा गांधी जब आत्मनिर्भरता की बात करते थे तो कई लोग उनकी वैश्विक दृष्टि पर सवाल उठाते थे. विदेशी कपड़ों की होली जलाने के उनके आह्वान का विरोध करने वालों में बहुत से बुद्धिजीवी भी शामिल थे. हैरानी की बात है कि विदेशी कपड़ों के बहिष्कार से लंकाशायर (इंग्लैंड) की जिन कपड़ा मिलों को भारी नुकसान हो रहा था, वहां के कामगारों ने गांधीजी का विरोध नहीं किया, बल्कि गांधीजी जब इंग्लैंड दौरे के दौरान उनसे मिलने गए तो बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया था. उन्...

सद्‌गुणों का सौंदर्य

फूलों  का खिलना इतना अच्छा लगता है  तोड़ना उन्हें तो दूर, पास से छूने में डर लगता है  वे कहीं न आहत या फिर मैले हो जायें। उनके जैसा ही सुंदर पर, बनने की कोशिश करता हूं उनकी ही तरह जहां जाऊं बिखरे सुगंध मिलती है मुझे खुशी जितनी फूलों से उतनी ही लोगों को भी मुझसे खुशी मिले फूलों के जैसा ही बनने का मेरा भी मन करता है। जड़ मिट्टी में, मुझको आकर्षित करती है खुद रहकर भी गुमनाम चूमने की खातिर वह आसमान पेड़ों को पोषण देती है मैं भी उनकी ही तरह, दिखावा किये बिना मेहनत इतनी घनघोर चाहता हूं कि करूं पोषण मिल पाये सभी सद्‌गुणों को मेरे पेड़ों जैसे ही वे भी खूब फलें-फूलें। दुनिया में मुझको जो भी अच्छी  चीज दिखाई पड़ती है मैं नहीं चाहता उसको मुझसे क्षति पहुंचे  बस उसका गुण अपने भीतर लाने की कोशिश करता हूं कोई भी चाहे ताकि देखना दुनिया की सुंदरता को हम इंसानों को देखे तो कह सके समाई है दुनिया की सुंदरता इसमें सारी ईश्वर की सबसे मूल्यवान कृति है यह, सबसे सुंदर है! रचनाकाल : 3 अप्रैल 2025

अंधाधुंध दौड़ से बढ़ती यांत्रिकता और कुंद होती प्रतिभा

 वैसे तो बहुत सारी चीजें डमी होती हैं लेकिन क्या आपने कभी सुना कि स्कूल भी डमी होते हैं? और वह भी सीबीएसई से सम्बद्ध स्कूल! लेकिन सीबीएसई अर्थात केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की हालिया चेतावनी बताती है कि वे होते हैं और बोर्ड ने कहा है कि डमी स्कूलों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को परीक्षा से वंचित किया जा सकता है. डमी अर्थात ऐसे स्कूल जहां छात्र प्रवेश तो लेते हैं लेकिन क्लास अटैंड नहीं करते. ऐसे स्कूलों का कोचिंग संस्थानों से टाय-अप होता है, जिससे स्कूलों को अपनी फीस मिल जाती है, और छात्रों को कोचिंग में पढ़ने के लिए पूरा समय. चूंकि सिलेबस एक ही होता है, इसलिए छात्र स्कूल गए बिना ही बारहवीं की परीक्षा भी पास कर लेते हैं. लेकिन आज के जमाने में, जब साध्य को ही सबकुछ माना जाता है, छात्रों द्वारा परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के बावजूद सीबीएसई उन्हें ‘चेतावनी’ क्यों दे रहा है? एक और महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि छात्रों को कक्षा में आने के लिए ‘मजबूर’ करने के बजाय उन्हें इसके लिए ‘आकर्षित’ करना क्या ज्यादा सही तरीका नहीं होगा? सीबीएसई ने अपनी चेतावनी के कारणों का खुलासा भले न किया हो, ल...