मनुष्यता बढ़ाती कविता


दरबारी लोगों के हाथों जब कविता थी
गुणगान किया करती थी वह राजाओं का
संतों के हाथों में आकर वह भजन बनी
करके प्रहार इससे कुरीतियों पर कबीर
लाये समाज में जनजागृति, जड़ता तोड़ी
दिनकर जैसे कवियों ने इससे लोगों में
भर देशप्रेम का भाव, जगाया स्वाभिमान
अद्‌भुत है जैसे भी ढालो
कविता वैसे ढल जाती है!

मैं इसे बनाकर आत्मनिरीक्षण का माध्यम
अपने भीतर की कमियां ढूंढ़ा करता हूं
जो लिखता हूं जीने की कोशिश करता हूं
बेहतर जितना मैं इसे बनाता जाता हूं
बेहतर उतना यह मुझे बनाती जाती है!

रचनाकाल : 24-27 अप्रैल 2025

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