अपराधियों की बढ़ती कुटिलता से दुनिया में खत्म होती सरलता

 हाल ही में महाराष्ट्र साइबर सेल ने राज्य के कई विभागों की वेबसाइटों पर साइबर हमले की चेतावनी दी है. इसी क्रम में साइबर सेल ने मुंबई समेत पूरे देश में घिबली स्टाइल आर्ट को लेकर एक एडवाइजरी भी जारी की, जिसमें घिबली आर्ट के जरिये भारतीयों का डेटा विदेशी कंपनियों तक पहुंचने और उसके दुरुपयोग की आशंका जताई गई है. 

अभी कुछ दिनों पहले ही जापानी एनिमेशन तकनीक कही जाने वाली घिबली का जादू देशभर में आम लोगों के ऐसा सिर चढ़कर बोला कि उनमें अपनी घिबली फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करने की होड़ सी लग गई. हालांकि उस समय भी कुछ लोगों ने आशंका जताई थी कि यह खतरनाक हो सकता है, परंतु लोगों को लगा कि सोशल मीडिया के ढेरों प्लेटफॉर्म्स पर सबकी ढेरों फोटो तो मौजूद हैं, ऐसे में एक घिबली ही उनका क्या बिगाड़ लेगी! लेकिन अब साइबर सेल की एडवाइजरी ने उन्हें सन्न कर दिया है. 

विश्वास करना दरअसल मनुष्य का सहज स्वभाव होता है. हर चीज पर हम शंका करने लगें तो शायद जीवन बेहद कठिन हो जाएगा. आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास इतना समय नहीं है कि हर चीज के बारे में पूरी जांच-पड़ताल करे, इसलिए कुछ लोगों के अनुभव के बल पर हम अपनी धारणा बना लेते हैं.(हालांकि विज्ञान के क्षेत्र में यह काम नहीं करती, पुरानी धारणाओं को तोड़कर ही वैज्ञानिक आगे बढ़ते रहे हैं). जहां भी भीड़ नजर आती है, हम सहज ही खुद को उसके साथ जोड़ लेते हैं. भीड़ हमेशा से हमें सुरक्षा का बोध कराती रही है. कई सारी चीजों में हम अपने दिमाग पर जोर डालने के बजाय यह सोच कर भीड़ का अनुसरण करने लगते हैं कि इतने सारे लोग क्या बेवकूफ होंगे!

भीड़ की इसी मानसिकता का फायदा अब साइबर अपराधी उठा रहे हैं. कहते हैं भेड़ें एक-दूसरे के पीछे आंख मूंद कर चलती हैं और सामने वाली भेड़ यदि कुएं में गिर जाए तो पीछे वाली भी गिरती जाती हैं. इसी से ‘भेड़-चाल’ शब्द का जन्म हुआ. साइबर अपराधी जानते हैं कि कई मामलों में हम मनुष्य भी भेड़-चाल के आदी होते हैं और शायद वे इसी का फायदा उठाने की फिराक में हैं! हालांकि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. कहानीकार सुदर्शन की कालजयी कहानी ‘हार की जीत’ में बाबा भारती ने अपाहिज बनकर उनका घोड़ा लूटने वाले डाकू खड़क सिंह से इसीलिए कहा था कि घटना के बारे में किसी को बताना मत, वरना लोग जरूरतमंदों पर विश्वास नहीं करेंगे. 

जमाना आज पहले से बहुत अधिक क्रूर हो चला है. साइबर अपराधियों का अब डाकू खड़क सिंह की तरह हृदय परिवर्तन होने की उम्मीद नहीं की जा सकती. वे लोगों की सारी धारणाओं, विश्वासों को चकनाचूर कर रहे हैं. पुराने जमाने में लोग नैतिकता का एक स्तर बनाए रखते थे, भरोसा अर्जित करते थे, जिससे मनुष्यता में सबका विश्वास दृढ़ होता जाता था. अब अपराधियों ने सारे विश्वासों का दुरुपयोग कर उन्हें खोखला बना दिया है. इसलिए हर चीज को आज हमें शंका की नजर से देखना पड़ रहा है. यह सच है कि हमारे अविश्वास का खामियाजा कई बार जरूरतमंदों को भी भुगतना पड़ता है (फ्रॉड की बढ़ती घटनाओं के चलते ट्रेन या बस में किसी के जरूरी कॉल के लिए फोन मांगने पर देने में या किसी को सचमुच दरकार होने पर भी मदद करने में अब भले लोगों को डर लगने लगा है), लेकिन आज जब लुटेरे कदम-कदम पर जाल बिछाए बैठे हों तो इसके सिवा और चारा ही क्या है?  

(16 अप्रैल 2025 को प्रकाशित)

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