अचानक कुछ नहीं होता

जीवन में ऐसे अवसर आते कई
जहां दोराहे पर हम खुद को पाते खड़ा
एक निर्णय उस पल का
दिशा समूचे जीवन की तय करता है।
है नहीं पसंद मुझे सट्टा या जुआ
सही सोचा करते थे अल्बर्ट आइंस्टीन
कि ईश्वर नहीं खेलता है पांसे
फिर जीवन में क्यों हम सबके
दोराहे ऐसे आते हैं?

दिखता जितना है सरल
राह चुन लेना कोई भी
शायद उतना आसान नहीं होता
क्वांटम में चीजें भले दिखाई दें रैंडम
सचमुच में लेकिन नहीं अराजक कुछ होता
जो हमें विकल्प नजर आते
उनका चुनना भी पहले से तय होता है
अपने कर्मों से होते हैं हम बंधे
कि मरते समय ‘राम’ कह पाना
चाहे लगे बहुत ही सरल
मगर अभ्यास न हो जीवन भर का
तो सरल दिखाई देता जो
दरअसल असम्भव होता है!

रचनाकाल : 1-2 अप्रैल 2025

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक