अंधाधुंध दौड़ से बढ़ती यांत्रिकता और कुंद होती प्रतिभा
वैसे तो बहुत सारी चीजें डमी होती हैं लेकिन क्या आपने कभी सुना कि स्कूल भी डमी होते हैं? और वह भी सीबीएसई से सम्बद्ध स्कूल! लेकिन सीबीएसई अर्थात केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की हालिया चेतावनी बताती है कि वे होते हैं और बोर्ड ने कहा है कि डमी स्कूलों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को परीक्षा से वंचित किया जा सकता है. डमी अर्थात ऐसे स्कूल जहां छात्र प्रवेश तो लेते हैं लेकिन क्लास अटैंड नहीं करते. ऐसे स्कूलों का कोचिंग संस्थानों से टाय-अप होता है, जिससे स्कूलों को अपनी फीस मिल जाती है, और छात्रों को कोचिंग में पढ़ने के लिए पूरा समय. चूंकि सिलेबस एक ही होता है, इसलिए छात्र स्कूल गए बिना ही बारहवीं की परीक्षा भी पास कर लेते हैं. लेकिन आज के जमाने में, जब साध्य को ही सबकुछ माना जाता है, छात्रों द्वारा परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के बावजूद सीबीएसई उन्हें ‘चेतावनी’ क्यों दे रहा है? एक और महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि छात्रों को कक्षा में आने के लिए ‘मजबूर’ करने के बजाय उन्हें इसके लिए ‘आकर्षित’ करना क्या ज्यादा सही तरीका नहीं होगा?
सीबीएसई ने अपनी चेतावनी के कारणों का खुलासा भले न किया हो, लेकिन आईआईटियनों को मिलने वाले रोजगार में भारी कमी आने संबंधी संसदीय स्थायी समिति की ताजा रिपोर्ट के खुलासे से शायद उसकी चिंताओं को समझा जा सकता है. इस रिपोर्ट के अनुसार देश के शीर्ष इंजीनियरिंग संस्थानों यानी आईआईटी में बीटेक छात्रों की प्लेसमेंट दर घटती जा रही है. शीर्ष के मद्रास, बॉम्बे जैसे आईआईटी में भी क्रमश: 73.29 और 83.39 प्रतिशत छात्रों का प्लेसमेंट ही हो रहा है. इससे अन्य आईआईटी में प्लेसमेंट के परिदृश्य का अंदाजा लगाया जा सकता है.
अभिभावकों द्वारा कोचिंग सेंटरों में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने का क्रेज किसी से छिपा नहीं है. ये सेंटर बच्चों से दिन-रात इतनी हाड़तोड़ मेहनत करवाते हैं कि कई बच्चे बर्दाश्त न कर पाने के कारण अपनी जान तक दे देते हैं. जाहिर है इतनी कठोर मेहनत करने वाले छात्रों का सपना आईआईटी में पढ़ने का ही होता है. फिर वहां प्लेसमेंट के स्तर पर परिदृश्य निराशाजनक क्यों है?
सीबीएसई में प्रश्नों को यांत्रिक तरीके से हल करने के बजाय उन्हें समझने पर जोर दिया जाता है. लेकिन इस प्रक्रिया में समय लगता है और जेईई की परीक्षाओं में इतना समय नहीं होता. जबकि कोचिंग सेंटर ‘माॅक टेस्ट’ के जरिये निरंतर अभ्यास से प्रश्नों को इतना यांत्रिक बना देते हैं कि छात्र दिमाग पर ज्यादा जोर डाले बिना ही उन्हें तत्काल हल कर सकें. अभ्यास की महिमा इतनी ज्यादा है कि कठिन से कठिन काम भी बार-बार करने पर उसमें ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ता, हम उसे स्वचालित रूप से करने लगते हैं. इस गहन अभ्यास के बल पर गिनती के कुछ छात्र आईआईटी में प्रवेश तो पा लेते हैं लेकिन कुछ नया करने की क्षमता शायद खो बैठते हैं! यह अकारण नहीं है कि देश में टॉप माने जाने वाले आईआईटी भी वैश्विक स्तर की रैंकिंग में बहुत पीछे हैं. उनमें इनोवेशन नहीं होने की चिंता जताई जाती है. यांत्रिक ढंग से पढ़ने-पढ़ाने या सोचने से कुछ नया हो भी कैसे सकता है!
इस यांत्रिकता की जड़ें बहुत गहरी हैं. नर्सरी-केजी से ही हम बच्चों की दौड़ शुरू कर देते हैं, जहां से वे अंधाधुंध भागते हुए आईआईटी तो क्रैक कर जाते हैं, लेकिन फिर पाते हैं कि भागने के चक्कर में जीवन की महत्वपूर्ण चीजें तो पीछे ही छोड़ आए!
शायद हम भूल गए हैं कि जितना महत्व कागज पर लिखे शब्दों का होता है, उतना ही उनके बीच के स्पेस का भी, जिसके अभाव में वे अर्थ खो देते हैं. बच्चों को दौड़ाने के चक्कर में हमने उनके जीवन से इस स्पेस को ही खत्म कर दिया है, जिससे उन्हें सोचने-समझने का अवकाश नहीं मिलता, रचनात्मकता पनप नहीं पाती. सीबीएसई शायद अपने पाठ्यक्रम के माध्यम से बच्चों को यही स्पेस देना चाहता है, लेकिन क्या वह कोचिंग की अंधाधुंध दौड़ में शामिल बच्चों को चेतावनी के जरिये ‘मजबूर’ करके अपनी ओर ‘आकर्षित’ कर पाएगा?
(2 अप्रैल 2025 को प्रकाशित)
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