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Showing posts from September, 2025

अच्छे दिनों का बीजारोपण

मैं अच्छे दिन के इंतजार में पहले अक्सर खाली बैठा रहता था अनुकूल समय में काम बहुत कर लेता था प्रतिकूल समय में लेकिन सहमा रहता था। पर जब से जाना यह रहस्य पेड़ों पर फल ऋतु आने पर ही लगते हैं पर उसकी खातिर पेड़ लगाने पड़ते हैं तब से प्रतिकूल समय में भी मैं नहीं बैठता हूं खाली मन में रखता हूं यह अदम्य विश्वास बुरे दिन भले तुरंत न कट पायें पर आगे चल कर अच्छे दिन इसके बल पर ही आयेंगे जो आज बीज बोयेंगे हम फल उसका ही कल पायेंगे। रचनाकाल : 13 सितंबर 2025

संतुलन की कला

मैं जब भी हद से ज्यादा मेहनत करता हूं सीने में बढ़ता दर्द डराने लगता है पर थोड़ा भी जब ज्यादा सुस्ता लेता हूं तो समय नष्ट हो जाना विचलित करता है। जब नहीं संतुलन का महत्व था पता उठाकर बोझ अधिक पड़ जाता था बीमार मगर करते-करते आराम नींद लग जाती जब तो कई दिनों तक यूं ही सोया रहता था फिर सहसा खुलती नींद कभी तो व्यर्थ दिनों की भरपाई के चक्कर में मैं फिर से ज्यादा बोझ उठाया करता था इस तरह हमेशा अतियों में ही जीता था। अब समझ गया हूं तार अगर ढीला हो तो धुन नहीं सुरीली मन वीणा की लगती है ज्यादा लेकिन कसने पर भी कर्कश आवाज निकलती है इसलिये हमेशा सम पर ही रहने की कोशिश करता हूं आवाज बेसुरी शोर-शराबा लगती जो सुर सधते ही वह गीत सुरीला बनती है। रचनाकाल : 9 सितंबर 2025

नैतिकता को बेवकूफी समझने की मूर्खता से पिछड़ता देश

 ब्रिटेन में उपप्रधानमंत्री एंजेला रेनर ने हाल ही में नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया. रेनर ने एक घर खरीदा था और अनजाने में ही उस पर कम टैक्स चुकाया. दरअसल ब्रिटेन में पहली प्रॉपर्टी खरीदने पर कम टैक्स देना पड़ता है और दूसरी बार खरीदने पर ज्यादा. रेनर को लगा कि यह उनकी पहली प्रॉपर्टी है. लेकिन पता चला कि अपने विकलांग बेटे के लिए बनाए गए एक खास ट्रस्ट की वजह से यह फ्लैट उनकी दूसरी प्रॉपर्टी मानी गई है और इस हिसाब से उन्होंने 44 लाख रु. कम टैक्स भरा है. रेनर ने खुद ही स्वतंत्र सलाहकार लॉरी मैग्नस से जांच करवाई और अपनी गलती पाए जाने पर प्रधानमंत्री स्टार्मर को इस्तीफा सौंप दिया! रेनर अपनी पार्टी की प्रतिभाशाली नेता थीं और माना जा रहा था कि वे स्टार्मर की उत्तराधिकारी होंगी. तो, उन्होंने भविष्य में प्रधानमंत्री बनने का मौका गंवा दिया है. रेनर ने आखिर ऐसा क्यों किया? गलती की भरपाई वे जुर्माना भरकर भी तो कर सकती थीं! आखिर किसी उपप्रधानमंत्री के लिए 44 लाख की रकम इतनी बड़ी तो नहीं हो सकती कि इसका खामियाजा उसे राजनीतिक निर्वासन के रूप में भुगतना पड़े! वह भी तब जब हमारे देश की तरह वहां व...

जीने का ढंग

जब दर्द बढ़ गया सीने में तब सहसा ही यह लगा नहीं है मेरे पास समय ज्यादा इसलिये नहीं अब व्यर्थ एक पल को भी जाने देता हूं। जब जीता था निश्चिंत बीत जाते यूं ही दिन-रात नहीं हो पाता था कुछ काम हमेशा लगता था यह अभी मुझे तो बहुत दिनों तक जीना है! अब लगता है यह कहा किसी ने सही कि जीवन जियो इस तरह से जैसे कोई भी दिन अंतिम साबित हो सकता है तब ही सचमुच में हर दिन को जी पाओगे वरना आखिर में पछताते रह जाओगे! रचनाकाल : 3 सितंबर 2025

इतनी खुशामद और चाटुकारिता कहां से सीख रहा है एआई ?

 वास्तविक दुनिया में ऐसे लोग कम होते जा रहे हैं जिनके पास आपकी बातें सुनने, सहानुभूति जताने और समाधान सुझाने के लिए समय हो. शायद इसीलिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का हमारी जिंदगी में स्थान बढ़ता जा रहा है, क्योंकि यह न केवल सहानुभूतिपूर्वक हमारी बातें सुनता है बल्कि हमारी बातों के समर्थन में वह हमारे सामने इतने मजबूत तर्क पेश करता है कि पुराने राजाओं के दरबारियों की जी-हुजूरी भी शरमा जाए! इस खुशामद के खतरों के प्रति गोस्वामी तुलसीदासजी ने सैकड़ों साल पहले ही यह कहकर आगाह किया था कि ‘सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास.’ लेकिन एआई को तो हमसे न कोई भय हो सकता है और न ही आस; फिर वह क्यों ऐसा कर रहा है?   वैसे तो एआई का इतिहास कई दशक पुराना है लेकिन पिछले कुछ महीनों में चैटजीपीटी, डीपसीक, ग्रोक, गूगल जेमिनी, मेटा एआई जैसे चैटबॉट आने के बाद कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति आई है. माना जा रहा था कि एआई सबकुछ जानता है और मानवीय सीमाओं के आगे जाकर भी हमें राह दिखा सकता है. लेकिन हाल के दिनों में कई लोगों को लगने लगा...