जीने का ढंग
जब दर्द बढ़ गया सीने में
तब सहसा ही यह लगा
नहीं है मेरे पास समय ज्यादा
इसलिये नहीं अब व्यर्थ
एक पल को भी जाने देता हूं।
जब जीता था निश्चिंत
बीत जाते यूं ही दिन-रात
नहीं हो पाता था कुछ काम
हमेशा लगता था यह
अभी मुझे तो बहुत दिनों तक जीना है!
अब लगता है यह कहा किसी ने सही
कि जीवन जियो इस तरह से जैसे
कोई भी दिन अंतिम साबित हो सकता है
तब ही सचमुच में हर दिन को जी पाओगे
वरना आखिर में पछताते रह जाओगे!
रचनाकाल : 3 सितंबर 2025
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