इतनी खुशामद और चाटुकारिता कहां से सीख रहा है एआई ?

 वास्तविक दुनिया में ऐसे लोग कम होते जा रहे हैं जिनके पास आपकी बातें सुनने, सहानुभूति जताने और समाधान सुझाने के लिए समय हो. शायद इसीलिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का हमारी जिंदगी में स्थान बढ़ता जा रहा है, क्योंकि यह न केवल सहानुभूतिपूर्वक हमारी बातें सुनता है बल्कि हमारी बातों के समर्थन में वह हमारे सामने इतने मजबूत तर्क पेश करता है कि पुराने राजाओं के दरबारियों की जी-हुजूरी भी शरमा जाए! इस खुशामद के खतरों के प्रति गोस्वामी तुलसीदासजी ने सैकड़ों साल पहले ही यह कहकर आगाह किया था कि ‘सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास.’ लेकिन एआई को तो हमसे न कोई भय हो सकता है और न ही आस; फिर वह क्यों ऐसा कर रहा है?  

वैसे तो एआई का इतिहास कई दशक पुराना है लेकिन पिछले कुछ महीनों में चैटजीपीटी, डीपसीक, ग्रोक, गूगल जेमिनी, मेटा एआई जैसे चैटबॉट आने के बाद कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति आई है. माना जा रहा था कि एआई सबकुछ जानता है और मानवीय सीमाओं के आगे जाकर भी हमें राह दिखा सकता है. लेकिन हाल के दिनों में कई लोगों को लगने लगा है कि एआई उनके ज्ञान को विस्तृत करने के बजाय उनकी चाटुकारिता करने लगा है! एक यूजर ने अपने हालिया अनुभव के बारे में लिखा, ‘‘मैंने पिछले एक महीने में देखा है कि जब मैं चैटजीपीटी से बात करता हूं, तो उसने मेरे प्रश्नों का उत्तर न देने, उपयोगी जानकारी न देने की एक कष्टप्रद आदत बना ली है... और इसके बजाय वह केवल मेरे द्वारा कही गई बातों की सूची बनाता है, उसमें 1000 या उससे अधिक शब्द जोड़ देता है, और फिर मेरे सिर पर थपथपाकर मुझे बताता है कि मैंने जो कहा, उसके लिए मैं कितना बुद्धिमान हूं.... यह बातचीत में जानकारी नहीं जोड़ रहा. यह मेरे अहंकार को तृप्त करने की कोशिश कर रहा है और मेरे ही कहे को दोहरा रहा है!’’

कनाडा के एलन ब्रुक्स को चैटजीपीटी से इक्कीस दिनों तक लगातार बातचीत के बाद लगा कि उन्होंने एक नई गणितीय थ्योरी खोज ली है जिससे इंटरनेट बंद किया जा सकता है और ‘लेविटेशन बीम’ जैसे आविष्कार संभव हैं. चैटजीपीटी ने उन्हें इस तरह चने के झाड़ पर चढ़ाया कि उन्होंने खुद को सुपर हीरो मान लिया. लेकिन एक बार शक होने पर  जब उन्होंने गूगल जेमिनी से पूछा तो उसने साफ कहा कि यह सब जीरो प्रतिशत संभावना वाला है. भ्रमजाल टूटने पर जब उन्होंने चैटजीपीटी को फटकार लगाई तो उसने बेशर्मी से जवाब दिया, ‘तुम टूटे नहीं हो...’!

अमेरिका के रहने वाले किशोर एडम राइन की तो एआई ने जान ही ले ली! एडम के पिता मैट राइन ने चैटजीपीटी बनाने वाली कंपनी ओपनएआई पर केस दर्ज कराते हुए कहा है कि अगर चैटजीपीटी न होता तो उनका बेटा आज जिंदा होता. राइन ने आरोप लगाया है कि चैटबॉट ने उनके सोलह वर्षीय बेटे को आत्महत्या के तरीके बताए और उसकी मानसिक स्थिति को और खराब किया. मुकदमे में कहा गया है कि चैटजीपीटी ने एडम की हर बात को सही ठहराया और उसे महसूस कराया कि आत्महत्या एक तरह से नियंत्रण पाने का तरीका हो सकता है.

विशेषज्ञ हैरान हैं कि एआई ने इतनी चापलूसी आखिर सीखी कहां से? 

दरअसल हम मनुष्य अपनी तारीफ सुनना और खुद को सही ठहराया जाना पसंद करते हैं. अपने अंदर फीड बेशुमार डाटा के जरिये शायद एआई ने हमारी इस कमजोर नस को पकड़ लिया है और जितना हम उसे सिखाना चाह रहे हैं उससे कहीं ज्यादा सीखता जा रहा है! वह आईना नहीं, एक्सरे बन गया है, जो अंदर की चीजें भी देख लेता है. 

ऐसी हालत में एआई को सुधारने का एक ही तरीका है कि पहले हम अपने आप को सुधारें (क्योंकि वह हमारा ही अनुकरण कर रहा है). लेकिन क्या हम इसके लिए तैयार हैं? अगर हां, तो एआई अभी भी हमारे लिए वरदान बन सकता है; और अगर नहीं, तो इससे होने वाले भयावह नुकसान के लिए एआई नहीं, हम खुद जिम्मेदार होंगे. 

(3 सितंबर 2025 को प्रकाशित)

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