संतुलन की कला

मैं जब भी हद से ज्यादा मेहनत करता हूं
सीने में बढ़ता दर्द डराने लगता है
पर थोड़ा भी जब ज्यादा सुस्ता लेता हूं
तो समय नष्ट हो जाना विचलित करता है।
जब नहीं संतुलन का महत्व था पता
उठाकर बोझ अधिक पड़ जाता था बीमार
मगर करते-करते आराम नींद लग जाती जब
तो कई दिनों तक यूं ही सोया रहता था
फिर सहसा खुलती नींद कभी तो
व्यर्थ दिनों की भरपाई के चक्कर में
मैं फिर से ज्यादा बोझ उठाया करता था
इस तरह हमेशा अतियों में ही जीता था।
अब समझ गया हूं तार अगर ढीला हो तो
धुन नहीं सुरीली मन वीणा की लगती है
ज्यादा लेकिन कसने पर भी
कर्कश आवाज निकलती है
इसलिये हमेशा सम पर ही
रहने की कोशिश करता हूं
आवाज बेसुरी शोर-शराबा लगती जो
सुर सधते ही वह गीत सुरीला बनती है।


रचनाकाल : 9 सितंबर 2025

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