कर्मों की ध्वनि मन सुनता है
जब बात नहीं सुनते थे मेरी लोग
बहुत मैं परेशान तब होता था
झल्लाता, गुस्सा आता
मन उद्विग्न हमेशा रहता था।
सहसा ही लेकिन लगा एक दिन
यह तो केवल मेरी नहीं समस्या है
दुनिया में सारे झगड़ों की जड़ ही यह है
सबको लगता है सब जन उनकी बात सुनें!
तब से मैं जो कहने की इच्छा रखता हूं
आचरण स्वयं करने की कोशिश करता हूं
पहले मुझको लगता था
जितना तेज अधिक चिल्लाऊंगा
उतना ही ज्यादा लोग उसे सुन पाएंगे
पर समझ गया अब यह रहस्य
हम इंसानों की वाणी
ज्यादा दूर नहीं जा पाती है
तय फ्रीक्वेंसी में ही बस हम सुन पाते हैं
पर हाथी जैसे इंफ्रासोनिक
ध्वनियों को सुन लेता है
जो बहुत दूर तक जाती है
वैसे ही कर्मों की ध्वनि की
पिच धीमी इतनी होती है
जो कान भले ही सुन न सकें
पर मन सबका सुन लेता है!
रचनाकाल : 28 सितंबर 2025
Comments
Post a Comment