Posts

Showing posts from August, 2025

गुस्सा

बहुत जल्दी आ जाता है आजकल गुस्सा और चाहने पर भी नहीं जाता जल्दी ऐसे मौकों पर ही होता है महसूस कि जिस शरीर को हम समझते हैं अपना आसान नहीं होता है उसे अपने हिसाब से ढालना। यह सिर्फ व्यक्तिगत बात होती तो शायद नहीं लगता इतना डर पर लगता है सारी मानव जाति ही उबल रही है इन दिनों गुस्से में जगह-जगह मच रही है मार-काट और इससे भी भयानक तो यह है कि धरती का गुस्सा भी बढ़ रहा है लगातार जो आपदाएं आती थीं कभी कई-कई सालों में अब आने लगी हैं वे कुछ ही दिनों-महीनों में। तो क्या ग्लोबल वॉर्मिंग से ही बढ़ रहा है हमारा गुस्सा? पर प्रकृति को भी तो हमने ही दिलाया है गुस्सा! परमाणु विखण्डन की तरह दुनिया में शुरू हुआ है गुस्से का जो चेन रिएक्शन क्या वह सबकुछ तबाह करके ही छोड़ेगा? रचनाकाल : 30-31 अगस्त 2025

चुनौतियों से बचाने में नहीं, उन्हें झेलने का हौसला देने में है दयालुता

 मां की ममता को दुनिया में अतुलनीय माना जाता रहा है, लेकिन अब खबर है कि चीन के वैज्ञानिक एक ऐसा रोबोट बनाने में जुटे हैं जो नौ महीने तक बच्चे को गर्भ में रखने के साथ ही उसे जन्म भी दे सकता है. कहा जा रहा है कि इससे महिलाओं को गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं और खतरों से राहत मिल सकती है.  अभी तक की जानकारी के अनुसार पूरे ब्रह्माण्ड में धरती ही एक ऐसा ग्रह है जहां जीवन है. इसको संभव बनाने के लिए यहां हर चीज में इतना अद्‌भुत संतुलन है कि जानकर दंग रह जाना पड़ता है. धरती अगर सूरज से जरा भी और दूर होती तो असहनीय ठंड के कारण और जरा सा नजदीक हो जाती तो भयावह गर्मी की वजह से शायद हम मनुष्यों का अस्तित्व संभव न हो पाता. इसी तरह चंद्रमा से हमारे ग्रह की दूरी थोड़ी सी भी कम या ज्यादा होती तो कहते हैं जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियां पैदा न हो पातीं. धरती पर हर चीज इतने आश्चर्यजनक ढंग से सटीक है कि शायद इसे देखकर ही महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने क्वांटम यांत्रिकी के अनिश्चितता के सिद्धांत के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि ईश्वर पासे नहीं खेलता. या फिर हमको लगने लगा है कि खेल...

सीखने का नाम जीवन

मैं पहले बहुत अनाड़ी था अपने ‘गंवार’ होने का था अभिमान नफ़ासत शहरों की मैं जानबूझकर नहीं सीखने की जिद में ही रहता था। पर जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, यह पता चला जब से जीवन का जन्म हुआ सब जीव-जंतु अनुभव से सीखा करते हैं अपने अनुभव को डीएनए के जरिये वे आगामी पीढ़ी तक पहुंचाया करते हैं । फिर क्यों न शहर-गांवों की अच्छी बातों को हम अपने भीतर जज्ब करें जो मिली विरासत उसका सार ग्रहण करके आने वाली पीढ़ी को उसे प्रदान करें? यह तय है पीछे नहीं लौटता कभी समय कितने भी लगें सुनहरे बीते दिन लेकिन उनसे लेकर हम सीख सिर्फ आगे बढ़ते रह सकते हैं फिर क्यों झगड़ों में तुच्छ, उलझकर जीवन अपना व्यर्थ बिताया करते हैं? रचनाकाल : 20 अगस्त 2025

पूर्वाग्रह थोपने से कुंद होती प्रतिभा और अवरुद्ध होता विकास

 कहावत है कि इतिहास विजेता का ही लिखा जाता है. इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि सत्तारूढ़ दल इतिहास को अपने नजरिये से दिखाने की कोशिश करता है. इन दिनों देश में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के मौके पर जारी एक विशेष पाठ की चर्चा हो रही है. इस पाठ में भारत के बंटवारे के लिए मोहम्मद अली जिन्ना, कांग्रेस और तत्कालीन वायसराय लार्ड माउंटबेटन को जिम्मेदार ठहराया गया है. इसके पहले भी एनसीईआरटी पर स्कूली पाठ्यक्रम में तथ्यों को देखने का दृष्टिकोण बदलने के ‘आरोप’ लगते रहे हैं. आखिर तय कैसे हो कि तथ्यों को पहले जिस दृष्टिकोण से देखा जा रहा था वह सही था या अब जो बदलाव किया गया है वह सही है?  दुनिया में जितने भी टकराव होते हैं उनके पीछे नजरिये का ही फर्क होता है. प्राचीनकाल से ही विजेता के दृष्टिकोण को सही माना जाता रहा है. फिर आज अगर अपने नजरिये से बच्चों को इतिहास पढ़ाने की पहल हो रही है तो इसमें गलत क्या है? लेकिन लोकतंत्र में तो हर पांच साल में चुनाव होते हैं! तो क्या इतनी जल्दी-जल्दी इतिहास को देखने के नजरिये में बदलाव व्या...

सपनों का भारत

तुमने देखी नहीं है पराधीनता 'काला पानी' है क्या ये पता ही नहीं खुशनसीब हो कि आजाद पैदा हुए  पर दिलाई तुम्हें जिसने स्वाधीनता कर्ज उनका हो संभव तो करना अदा कुछ कठिन खास तो है नहीं काम ये बस ठहर कर जरा देर ये सोचना सोच कर जान अपनी उन्होंने जो दी सपना आंखों में था जो सुनहरा बसा पूरा तुमने किया है उसे या नहीं उनके सपनों का भारत ये है या नहीं! नींद सहसा खुली तो पता ये चला जश्न  का है ये दिन आज पंद्रह अगस्त  जाने सपनों में मेरे पर आया था कौन  प्रश्न कैसा तो ये अटपटा कर गया! रचनाकाल : 15 अगस्त 2025

हिमालय में उगते कांक्रीट के जंगल और बदला लेती प्राकृतिक आपदाएं

 करीब एक सप्ताह पहले उत्तराखंड में, जब गंगोत्री से 18 किमी दूर धराली में जलप्रलय आई तो लगभग आधे मिनट में ही पूरा धराली गांव मलबे में बदल गया. हालांकि गांव शायद यह नाम का ही है, तबाही के वीडियो गवाही देते हैं कि वहां कांक्रीट का कितना घना जंगल था. जिस गंगोत्री की यात्रा चारों धामों में सबसे कठिन मानी जाती रही है, उससे मात्र 18 किमी दूर अगर हम ऐसे शहर बसा रहे हैं तो प्रकृति से और कैसी प्रतिक्रिया की उम्मीद कर सकते हैं? दु:ख तो यह है कि वर्ष 2013 में केदारनाथ में बादल फटने से आई आपदा में बीस हजार से अधिक लोगों के मारे जाने से भी हमने कुछ सबक नहीं सीखा! क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देवी-देवता प्राय: दुर्गम वन-पर्वतों पर ही क्यों निवास करते हैं? वैष्णोदेवी मंदिर हो या अमरनाथ गुफा, उत्तराखंड के केदारनाथ-बद्रीनाथ हों या गंगोत्री-यमुनोत्री, पचमढ़ी का नागद्वार हो या गुजरात का पावागढ़, कठिन यात्रा करके ही लोग वहां पहुंचते थे. आज हमने पहाड़ों का सीना चीरकर वहां तक शानदार सड़कें बना दी हैं. लेकिन इसका खामियाजा जिस तरह से प्राकृतिक आपदाओं के रूप में उठाना पड़ रहा है, उससे मन में शंका होती है ...

प्रतिमान

मैं कभी-कभी इस उलझन में पड़ जाता हूं पुरखे थे विकसित अधिक या कि हम लोगों के वंशज होंगे! जब समय हमेशा आगे बढ़ता जाता है तो जिसको अधिक विरासत मिलती जाती है वह आने वाली पीढ़ी ही तो बुद्धिमान सबसे ज्यादा कहलायेगी! क्या नहीं नयी पीढ़ी के बच्चे हम सबको पहले के बच्चों से कुछ ज्यादा स्मार्ट दिखाई देते हैं! फिर सारे ईश्वर क्यों अतीत में होते हैं? शायद जीवनभर की अनथक मेहनत से ही आगामी पीढ़ी की खातिर ईश्वर का दर्जा किसी-किसी को मिलता है चलकर उसके पदचिन्हों पर जिससे हम भी उसके भी आगे नये-नये प्रतिमान गढ़ें फिर क्यों हम उससे पीछे ही रह जाते हैं? अनुकरण न कर बस उन्हें पूजते जाते हैं! जिस तरह चाहते हैं दुनिया के सभी पिता बच्चे उनसे भी आगे बढ़कर उनका रौशन नाम करें क्या परमपिता की भी न यही ख्वाहिश होगी! रचनाकाल : 7 अगस्त 2025

प्रकृति पर जीत हासिल करने की सनक में जिंदगी का सत्यानाश !

 मशहूर कम्प्यूटर वैज्ञानिक और भविष्यवक्ता रे कुर्जवील ने एक सनसनीखेज दावा किया है कि आज से पांच साल बाद अर्थात वर्ष 2030 से इंसानों की मौत बंद हो जाएगी, यानी हम अमर हो जाएंगे!  हो सकता है अभी हमें यह दावा अविश्वसनीय लगे, लेकिन ध्यान रखना होगा कि रे कुर्जवील की 147 भविष्यवाणियों में से अब तक 86 प्रतिशत सही साबित हो चुकी हैं. तकनीकी विकास की हैरतअंगेज तरक्की को देखते हुए उनकी इस भविष्यवाणी को हल्के में नहीं लिया जा सकता. रे ने अपनी किताब ‘द सिंगुलैरिटी इज नियर’ में लिखा है कि 2030 तक तकनीक इतनी आगे बढ़ जाएगी कि इंसान हमेशा जीवित रह सकता है. कुर्जवील के अनुसार, नैनोटेक्नोलॉजी और रोबोटिक्स के मेल से शरीर में नैनोबोट्स डाले जाएंगे. ये नैनोबोट्स हमारे शरीर की डैमेज सेल्स व टिशूज को ठीक करते रहेंगे, जिससे उम्र बढ़ने की प्रक्रिया रोक दी जाएगी और कई बीमारियों से प्राकृतिक रूप से बचाव हो सकेगा.  अमर होने की मानवीय आकांक्षा कोई नई बात नहीं है. अमृत पाने के लिए देवताओं और दैत्यों द्वारा मिलकर समुद्र मंथन किए जाने की पौराणिक कथा जग-प्रसिद्ध है. सौभाग्य से ऐसे किसी अमृत की खोज अभी तक ह...

न्याय-अन्याय

अन्याय कहीं जब दिखता था ईश्वर को कोसा करता था उसको तो सब है पता नहीं फिर दुनिया में क्यों न्याय हमेशा करता है? पर देखा जब हम करके भी अपराध छुपा ले जाते हैं दुनिया को मन के पाप नहीं दिख पाते हैं महसूस हुआ तब दिखते हैं दुनिया में जो अपराध और अन्याय दरअसल हिमखण्डों का छोटा हिस्सा होते हैं बाकी तो आइसबर्ग की तरह मन में डूबे होते हैं! इसलिये किसी के पाप-पुण्य का नहीं फैसला करता हूं जितना मुझसे हो सकता है अच्छा हरदम करने की कोशिश करता हूं सच तो यह है जो सुखी दिखाई देता है क्या पता कि मन में कितना विचलित रहता है जो निर्धन लेकिन दिखता है दिनभर करके मेहनत रातों को घोड़े बेच के सोता है! (रचनाकाल : 30 जुलाई-1 अगस्त 2025)

सुख-दु:ख

कहते हैं इस दुनिया में सुख-दु:ख एक बराबर होते हैं फिर चारों तरफ हमें क्यों जग में दु:ख ही दु:ख बस दिखते हैं! दु:ख शायद सबसे अपना हम सब मिलकर बांटा करते हैं सुख में पर शामिल नहीं किसी को करते हैं! है नियम सृष्टि का बांटा जाता जो कुछ भी वह दुगुना होता जाता है पर जिसे बचाकर रखो खत्म तेजी से होता जाता है क्या इसीलिये दुनिया में दु:ख भी अधिक दिखाई पड़ते हैं सुख छिपकर भोगे जाते हैं इसलिये नजर कम आते हैं! (रचनाकाल : 25 जुलाई 2025)