चुनौतियों से बचाने में नहीं, उन्हें झेलने का हौसला देने में है दयालुता

 मां की ममता को दुनिया में अतुलनीय माना जाता रहा है, लेकिन अब खबर है कि चीन के वैज्ञानिक एक ऐसा रोबोट बनाने में जुटे हैं जो नौ महीने तक बच्चे को गर्भ में रखने के साथ ही उसे जन्म भी दे सकता है. कहा जा रहा है कि इससे महिलाओं को गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं और खतरों से राहत मिल सकती है. 

अभी तक की जानकारी के अनुसार पूरे ब्रह्माण्ड में धरती ही एक ऐसा ग्रह है जहां जीवन है. इसको संभव बनाने के लिए यहां हर चीज में इतना अद्‌भुत संतुलन है कि जानकर दंग रह जाना पड़ता है. धरती अगर सूरज से जरा भी और दूर होती तो असहनीय ठंड के कारण और जरा सा नजदीक हो जाती तो भयावह गर्मी की वजह से शायद हम मनुष्यों का अस्तित्व संभव न हो पाता. इसी तरह चंद्रमा से हमारे ग्रह की दूरी थोड़ी सी भी कम या ज्यादा होती तो कहते हैं जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियां पैदा न हो पातीं. धरती पर हर चीज इतने आश्चर्यजनक ढंग से सटीक है कि शायद इसे देखकर ही महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने क्वांटम यांत्रिकी के अनिश्चितता के सिद्धांत के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि ईश्वर पासे नहीं खेलता.

या फिर हमको लगने लगा है कि खेलता है! और इसीलिए क्या हम विषमताओं से भरी दुनिया में अपनी मानव जाति को कष्टों-संघर्षों से कृत्रिम तरीके से बचाना चाहते हैं? 

हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक बिल्ली का बच्चा सीढ़ी पर चढ़ने के चक्कर में बार-बार गिर रहा था लेकिन मां उसे मुंह से उठाकर ऊपर चढ़ाने की बजाय खुद चढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी. आखिर कई असफल कोशिशों के बाद वह बच्चा ऊपर चढ़ने में सफल हो ही गया. 

 किसी भी जीव के नवजात बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जन्म के बाद कुछ घंटों या कुछ दिनों से ज्यादा का समय नहीं लगता; फिर दुनिया का सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के बावजूद हम मनुष्य इतने नाजुक क्यों होते हैं? आज तक जितने भी आविष्कार हमने किए हैं, अपनी सुख-सुविधाओं में इजाफे के लिए ही किए हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि जितना हम सुविधाभोगी बनते जाते हैं, उतना ही कमजोर भी होते जाते हों!

यह सच है कि स्वास्थ्य ही जीवन का नियम होना चाहिए, बीमारियों का मतलब है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है. यह भी सच है कि सारे जीव-जंतुओं में सबसे ज्यादा बीमार हम मनुष्य ही होते हैं. लेकिन प्राय: हम बीमारियों का कारण ढूंढ़कर उसे खत्म करने की बजाय उसके लक्षणों को मिटाने में ही लगे रहते हैं. क्या यह ऐसा ही नहीं है जैसे प्रेशर कुकर से निकलती भाप को रोकने के लिए उसकी सीटी के छेद को ही बंद कर दिया जाए!

महिलाओं को प्रसव पीड़ा से बचाने के चक्कर में हम प्रेग्नेंसी रोबोट तो बना रहे हैं लेकिन उस रोबोट में मां की ममता कैसे ला पाएंगे! और ममताविहीन शिशु क्या इंसान बन पाएगा? 

महान कवि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी नोबल विजेता कृति ‘गीतांजलि’ में कहा है, ‘हे प्रभु, मैं यह नहीं चाहता कि मेरे दु:खों को हर लो, लेकिन यह वरदान जरूर मांगता हूं कि मुझे उन्हें सहने की शक्ति दो.’ हमें भी अपनी मानव जाति के जीवन को चुनौती विहीन बनाने की बजाय शायद उन्हें चुनौतियों से जूझने का हौसला देना चाहिए.  

दुनिया में सारे जीव ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ की अवधारणा पर चलते हैं अर्थात जो सबसे ज्यादा फिट होगा, वही सर्वाइव कर पाएगा. हो सकता है प्रकृति का यह सिद्धांत हमें ‘जंगलराज’ जैसा लगे, जहां निर्बलों के लिए कोई जगह नहीं होती, लेकिन अपने बीच की निर्बलता को स्वेच्छा से सबलता में बदलने की कोशिश तो हम कर ही सकते हैं! और तब शायद हमें समझ में आ सके कि दयालुता किसी मां को प्रसव पीड़ा से बचाने के लिए प्रेग्नेंसी रोबोट का निर्माण करने में ही नहीं होती बल्कि अपने बच्चे को ऊंचाई पर स्वयं चढ़ाने के बजाय उसकी हौसला-अफजाई करने वाली बिल्ली में भी होती है. और क्या पता, वह बिल्ली ही वास्तविक अर्थों में दयालु हो! 

(27 अगस्त 2025 को प्रकाशित)

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