सपनों का भारत


तुमने देखी नहीं है पराधीनता
'काला पानी' है क्या ये पता ही नहीं
खुशनसीब हो कि आजाद पैदा हुए 
पर दिलाई तुम्हें जिसने स्वाधीनता
कर्ज उनका हो संभव तो करना अदा
कुछ कठिन खास तो है नहीं काम ये
बस ठहर कर जरा देर ये सोचना
सोच कर जान अपनी उन्होंने जो दी
सपना आंखों में था जो सुनहरा बसा
पूरा तुमने किया है उसे या नहीं
उनके सपनों का भारत ये है या नहीं!

नींद सहसा खुली तो पता ये चला
जश्न  का है ये दिन आज पंद्रह अगस्त 
जाने सपनों में मेरे पर आया था कौन 
प्रश्न कैसा तो ये अटपटा कर गया!

रचनाकाल : 15 अगस्त 2025

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