सुख-दु:ख
कहते हैं इस दुनिया में सुख-दु:ख
एक बराबर होते हैं
फिर चारों तरफ हमें क्यों जग में
दु:ख ही दु:ख बस दिखते हैं!
दु:ख शायद सबसे अपना हम सब
मिलकर बांटा करते हैं
सुख में पर शामिल नहीं किसी को करते हैं!
है नियम सृष्टि का बांटा जाता जो कुछ भी
वह दुगुना होता जाता है
पर जिसे बचाकर रखो
खत्म तेजी से होता जाता है
क्या इसीलिये दुनिया में दु:ख भी
अधिक दिखाई पड़ते हैं
सुख छिपकर भोगे जाते हैं
इसलिये नजर कम आते हैं!
(रचनाकाल : 25 जुलाई 2025)
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