सीखने का नाम जीवन
मैं पहले बहुत अनाड़ी था
अपने ‘गंवार’ होने का था अभिमान
नफासत शहरों की मैं जानबूझकर
नहीं सीखने की जिद में ही रहता था।
पर जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, यह पता चला
जब से जीवन का जन्म हुआ
सब जीव-जंतु अनुभव से सीखा करते हैं
अपने अनुभव को डीएनए के जरिये वे
आगामी पीढ़ी तक पहुंचाया करते हैं।
फिर क्यों न शहर-गांवों की अच्छी बातों को
हम अपने भीतर जज्ब करें
जो मिली विरासत उसका सार ग्रहण करके
आने वाली पीढ़ी को उसे प्रदान करें?
यह तय है पीछे नहीं लौटता कभी समय
कितने भी लगें सुनहरे बीते दिन लेकिन
उनसे लेकर हम सीख सिर्फ आगे बढ़ते रह सकते हैं
फिर क्यों झगड़ों में तुच्छ, उलझकर
जीवन अपना व्यर्थ बिताया करते हैं?
रचनाकाल : 20 अगस्त 2025
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