न्याय-अन्याय
अन्याय कहीं जब दिखता था
ईश्वर को कोसा करता था
उसको तो सब है पता
नहीं फिर दुनिया में क्यों न्याय हमेशा करता है?
पर देखा जब हम करके भी
अपराध छुपा ले जाते हैं
दुनिया को मन के पाप नहीं दिख पाते हैं
महसूस हुआ तब दिखते हैं
दुनिया में जो अपराध और अन्याय
दरअसल हिमखण्डों का छोटा हिस्सा होते हैं
बाकी तो आइसबर्ग की तरह मन में डूबे होते हैं!
इसलिये किसी के पाप-पुण्य का
नहीं फैसला करता हूं
जितना मुझसे हो सकता है
अच्छा हरदम करने की कोशिश करता हूं
सच तो यह है जो सुखी दिखाई देता है
क्या पता कि मन में कितना विचलित रहता है
जो निर्धन लेकिन दिखता है
दिनभर करके मेहनत रातों को
घोड़े बेच के सोता है!
(रचनाकाल : 30 जुलाई-1 अगस्त 2025)
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