गुस्सा

बहुत जल्दी आ जाता है आजकल गुस्सा
और चाहने पर भी नहीं जाता जल्दी
ऐसे मौकों पर ही होता है महसूस
कि जिस शरीर को हम समझते हैं अपना
आसान नहीं होता है उसे अपने हिसाब से ढालना।
यह सिर्फ व्यक्तिगत बात होती
तो शायद नहीं लगता इतना डर
पर लगता है सारी मानव जाति ही
उबल रही है इन दिनों गुस्से में
जगह-जगह मच रही है मार-काट
और इससे भी भयानक तो यह है
कि धरती का गुस्सा भी बढ़ रहा है लगातार
जो आपदाएं आती थीं कभी कई-कई सालों में
अब आने लगी हैं वे कुछ ही दिनों-महीनों में।
तो क्या ग्लोबल वॉर्मिंग से ही बढ़ रहा है हमारा गुस्सा?
पर प्रकृति को भी तो हमने ही दिलाया है गुस्सा!
परमाणु विखण्डन की तरह दुनिया में
शुरू हुआ है गुस्से का जो चेन रिएक्शन
क्या वह सबकुछ तबाह करके ही छोड़ेगा?

रचनाकाल : 30-31 अगस्त 2025


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