प्रतिमान
मैं कभी-कभी इस उलझन में पड़ जाता हूं
पुरखे थे विकसित अधिक
या कि हम लोगों के वंशज होंगे!
जब समय हमेशा आगे बढ़ता जाता है
तो जिसको अधिक विरासत मिलती जाती है
वह आने वाली पीढ़ी ही तो
बुद्धिमान सबसे ज्यादा कहलायेगी!
क्या नहीं नयी पीढ़ी के बच्चे हम सबको
पहले के बच्चों से कुछ ज्यादा स्मार्ट दिखाई देते हैं!
फिर सारे ईश्वर क्यों अतीत में होते हैं?
शायद जीवनभर की अनथक मेहनत से ही
आगामी पीढ़ी की खातिर
ईश्वर का दर्जा किसी-किसी को मिलता है
चलकर उसके पदचिन्हों पर जिससे हम भी
उसके भी आगे नये-नये प्रतिमान गढ़ें
फिर क्यों हम उससे पीछे ही रह जाते हैं?
अनुकरण न कर बस उन्हें पूजते जाते हैं!
जिस तरह चाहते हैं दुनिया के सभी पिता
बच्चे उनसे भी आगे बढ़कर उनका रौशन नाम करें
क्या परमपिता की भी न यही ख्वाहिश होगी!
रचनाकाल : 7 अगस्त 2025
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