कलाकार का ध्येय
हो कठिन भले ही कितना भी जीवन लेकिन कविता उसमें मिल जाती है तो सुंदर लगने लगता है चटनी-अचार से नीरस भोजन भी जैसे लगता रुचिकर लयबद्ध अगर हो, असहनीय भी सहने जैसा लगता है मैं नहीं जुटाता सुख-सुविधा, अपनी या दुनिया की खातिर करता मेहनत घनघोर, दूसरों को भी करने खातिर प्रेरित करता हूं घबरा कर लौटें बीच राह से लोग नहीं इसलिये कठिन दुर्गम पथ पर मैं गीत सुनाता चलता हूं कितनी भी हो हालत खराब, हो चुका पतन हो कितना भी पर कुछ भी नहीं असम्भव है दृढ़-निश्चय कर ले मानव तो इसलिये जगाता हूं मैं सद्वृत्तियां सभी के भीतर की अहसास कराता हूं उनको उनके ही मन की ताकत का बस एक बार चल पड़ें दिशा में लोग सही फिर मेरी नहीं जरूरत कुछ रह जायेगी पर दिशा बदल पाऊं विकास की इसीलिये संगीत-गीत हो, चित्रकला या चाहे कोई ललित कला सबका करके उपयोग, सभी को आकर्षित करने की कोशिश करता हूं जो दावानल में बदले, वह चिनगारी बन पाने की धुन में रहता हूं। रचनाकाल : 18-19 सितंबर 2023