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Showing posts from December, 2025

किताबी और व्यावहारिक ज्ञान की दूरी पाटने के लिए कब बनेंगे पुल ?

 हमारे भारत देश में डिग्रीधारी बेरोजगारों की भरमार है, कितनी ही बार ऐसी खबरें सुर्खियों में आ चुकी हैं कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक के पद के लिए बीटेक, एमटेक, एमबीए जैसी बड़ी-बड़ी डिग्रियों वाले लोग भी आवेदन करते हैं. लेकिन अब चीन से खबर आ रही है कि वहां भी डिग्रीधारी बेरोजगार बढ़ रहे हैं और नौकरियां घट रही हैं, इसलिए चीन सरकार अपने युवाओं को व्यावहारिक कौशल देने के लिए बड़े पैमाने पर बदलाव कर रही है. चूंकि वहां 16-24 आयुवर्ग में बेरोजगारी दर 17 प्रतिशत तक बढ़ गई है, इसलिए अब सरकार विश्वविद्यालयों से डिग्री ले चुके छात्रों को भी दोबारा तकनीकी प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.  प्राचीनकाल के गुरुकुलों में गुरु अपने शिष्यों से पहले कुछ साल तो कसकर काम लेते थे और औपचारिक शिक्षा अंत में जाकर ही देते थे. सहपाठी कृष्ण और सुदामा के गुरुपत्नी की आज्ञा से जंगल में जलाऊ लकड़ी लेने जाने की जगप्रसिद्ध घटना हो, बारिश में खेत की टूटी मेड़ से पानी रोकने के लिए खुद लेट जाने वाले आरुणि उर्फ उद्दालक की कथा हो या गुरु की आज्ञा के पालन के लिए मृत्यु की कगार तक पहुंच गए उपमन्यु का दृष्ट...

दिखावे की भेंट चढ़ती छोटी-छोटी खुशियां और जड़ जमाती बुराइयां

 मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल पांच जिलों में आदिवासियों ने शादी-ब्याह में फिजूलखर्ची रोकने के लिए ‘दारू-डीजे-दहेज’ फ्री (मिशन डी-3) नामक सराहनीय पहल शुरू की है, जिससे चाहे तो पूरा देश प्रेरणा ले सकता है. अलीराजपुर,  धार, झाबुआ, बड़वानी और खरगोन जिलों में पिछले दो वर्षों में हुई चार हजार से अधिक शादियों में संबंधित परिवारों के करोड़ों रुपए बचे हैं. दरअसल डीजे, दारू और दहेज सिर्फ आदिवासियों की ही समस्या नहीं है बल्कि पूरा देश इससे जूझ रहा है. हालांकि आदिवासी समाज में जन्म, विवाह और मृत्यु के कार्यक्रमों में प्राय: शराब पीने-पिलाने का चलन रहा है, लेकिन अब समाज के जागरूक लोगों ने शराब से होने वाले नुकसान को देखते हुए इससे दूर रहने का फैसला किया है. इसके अलावा डीजे की कानफोड़ू आवाज पर रोक लगाते हुए, शादी समारोह में केवल पारंपरिक वाद्य यंत्र ही बजाए जा रहे हैं, जिससे लोग अपनी परंपरा से पुनः जुड़ रहे हैं. जहां तक दहेज का सवाल है तो आदिवासी समाज में इसकी प्रथा नहीं रही है लेकिन दुर्भाग्य से आधुनिक समाज की देखा-देखी उनमें भी यह बुराई अपने पैर जमाने लगी थी. इसलिए आदिवासी समाज के कर्ता-धर्त...