जेन-जी के सपने
उस दिन जब मैं मिला जेन-जी पीढ़ी से
जब सुनी शिकायत मेरी पीढ़ी के प्रति तो
सपने अपने वे याद आये जो पहले देखा करता था
संवेदनशील कभी मैं भी तो इन लोगों जैसा ही था!
थी मगर शिकायत जो भी पिछली पीढ़ी से
मेरी पीढ़ी में भी सब दुर्गुण वही समाता गया
न जाने कैसे चमड़ी मोटी होती गई
घाघ हे ईश्वर कैसे मैं भी खुद बन गया!
अब नहीं शिकायत मुझे दूसरे लोगों से
खुद अपने से ही लड़ता हूं
रुक जाता है तो पानी सड़ने लगता है
सो आत्मनिरीक्षण हरदम करता रहता हूं
नई पीढ़ी की आंखों में पलते सपने जो
अपनी पीढ़ी के भी खिलाफ जाकर उनको
साकार हमेशा करने की
कोशिश में ही बस रहता हूं।
रचनाकाल : 19 दिसंबर 2025
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