जब सभी प्रशिक्षण लेते हैं, फिर नेता क्यों पुत्रों को वंचित रखते हैं ?
पिछले दिनों खबर आई कि हजारों करोड़ की दौलत के मालिक यूएई के अरबपति शेख खलफ अल हब्तूर के बेटे मुहम्मद ने होटल में बर्तन धोने, ग्राहकों के बिस्तर ठीक करने, झाड़ू-पोंछा लगाने और वेटर का काम किया है. पिता हब्तूर का कहना है, ‘करियर सिर्फ डिग्री से नहीं बनता, असली सीख फील्ड से मिलती है, इसलिए होटल मैनेजमेंट की डिग्री हासिल करने के बावजूद मैंने अपने बेटे को सीधे डायरेक्टर की कुर्सी पर नहीं बैठाया.’
अपने बेटे को जमीन से जोड़ने वाले शेख हब्तूर अकेले नहीं हैं. अमेरिका के अरबपति वकील जॉन मॉर्गन के बेटे डैनियल मॉर्गन ने जब बोस्टन मार्केट में नौकरी की तो उनके कामों में बर्तन धोना भी शामिल था. अरबपति मार्क क्यूबन भी अपने बच्चों से घर के बर्तन धोने सहित अन्य काम कराते हैं.
पुराने जमाने में राजा-महाराजा भी राजकुमारों को राजपाट सौंपने से पहले सर्वगुणसम्पन्न बनाने की कोशिश करते थे. विद्याध्ययन के लिए जब उन्हें आश्रमों में भेजा जाता तो गुरु उनके और आम शिष्यों के बीच कोई भेद नहीं करते थे. दरिद्र ब्राह्मण पुत्र सुदामा और राजपुत्र कृष्ण के बीच बराबरी वाला मैत्री भाव होता था. एक बार तो जब शिक्षा पूरी होने के बाद एक राजकुमार के गुरुकुल से विदा होने का समय आया तो गुरु ने अचानक ही उसे एक करारा थप्पड़ जड़ दिया. गुरु के इस आकस्मिक कृत्य से शिष्य सन्न रह गया और उसकी आंखें भर आईं; थप्पड़ के कारण नहीं बल्कि इस वजह से कि अपने पूरे शिक्षा काल के दौरान उसका आचरण इतना उत्तम रहा था कि गुरु के समक्ष उसे दंडित करने की कभी नौबत ही नहीं आई थी. शिष्य की आंखों में आंसू देख गुरु ने उसे समझाया कि तुम्हारी गलती कुछ भी नहीं है, लेकिन कल को जब तुम राजा बनोगे तो दोषियों को तुम्हें दंड भी देना पड़ेगा, इसलिए तुम्हें पीड़ा की अनुभूति होनी चाहिए, ताकि तुम निर्दयता से नहीं बल्कि सहानुभूति के साथ न्याय कर पाओ.
कहते हैं दिग्गज फिल्मकार पृथ्वीराज कपूर ने अपने बेटे राजकपूर को फिल्म निर्देशन की कला सीखने के लिए निर्देशक केदार शर्मा के अधीन रखा था. एक बार राजकपूर की युवकोचित उद्दंडता से गुस्साए शर्मा ने पूरे अधिकार भाव से उन्हें एक झापड़ रसीद कर दिया और अभिनेता-पुत्र ने चूं तक नहीं की थी. वही राजकपूर आगे चलकर भारतीय सिनेमा के महानतम शोमैन कहलाए. पुरानी पीढ़ी के लोगों को याद होगा कि बचपन में उनके अभिभावक जब उनसे पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछते और वे किसी शिक्षक की बुराई करते हुए बताते कि वे बहुत मारते हैं तो अभिभावक कहते थे कि इसका मतलब है वे तुम्हें बहुत प्यार करते हैं, वरना उन्हें क्या पड़ी है दंड देकर तुम्हें सुधारने की!
शेख हब्तूर की तरह, व्यवसाय के क्षेत्र में आज ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जिन्हें अपने बच्चों के जमीन से जुड़ाव की चिंता है. अरबपति बिल गेट्स ने तो साफ कह दिया है कि उनके बच्चों को उनकी दौलत का बड़ा हिस्सा नहीं मिलेगा. वे चाहते हैं कि बच्चे अपनी पहचान खुद बनाएं, न कि अपने पिता की दौलत पर निर्भर रहें. एलन मस्क अपनी संपत्ति का आधा हिस्सा दान करने और बाकी आधा ही अपने बच्चों को देने का इरादा रखते हैं. दिग्गज निवेशक वॉरेन बफे और फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने भी अपने बच्चों को बहुत सादगी भरा जीवन दिया है. दरअसल ज्यादा से ज्यादा अरबपति अपने बच्चों को विरासत में दौलत देने से इसलिए कतराते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे अपनी क्षमताओं के बल पर खुद आगे बढ़ सकें.
...लेकिन क्या हमारे राजनीतिक दलों के नेता भी ऐसा ही चाहते हैं? आखिर कितने ऐसे नेता हैं जिन्होंने राजनीति में आने के इच्छुक अपने बच्चों से आम राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह जनसभाओं में दरी बिछवाई है, पार्टी के पोस्टर चिपकवाए हैं या पार्टी दफ्तर में झाड़ू लगवाई है? अपनी संतानों की नालायकी का बचाव करने की बजाय आज कितने नेता उन्हें सबक दिलाने का प्रयास करते हैं? जब हर प्रोफेशन के लिए कुछ बुनियादी प्रशिक्षण अनिवार्य है तो नेता-पुत्रों को ही क्यों इससे बख्श दिया जाना चाहिए?
(10 दिसंबर 2025 को प्रकाशित)
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