सुख त्याग-तपस्या का

बचपन से ही राजा बलि, दानी कर्ण सरीखे
महादानियों के किस्से मुझको आकर्षित करते थे
वन-वन भटके जो राम और पांचों पाण्डव
दु:ख वैसा सहना रोमांचक-सा लगता था
पर मैं तो हूं इंसान बहुत ही मामूली
सर्वस्व दान यदि कर दूंगा, जीवन कैसे चल पायेगा
दु:ख अगर सहूंगा दु:सह तो तन टूट नहीं यह जायेगा!
इसलिये उठाये मैंने छोटे-छोटे पग
कर सकूं दान ज्यादा कुछ भले नहीं लेकिन
घनघोर परिश्रम से जो मिलता है वह ही बस लेता हूं
सुख पाने की जो मची दौड़ उसमें सबसे पीछे रहकर
सबका हो ताकि भला इसकी खातिर छोटे दु:ख सहता हूं
अद्‌भुत है यह इन मामूली कामों में भी
आनंद मुझे अनुपम मिलता ही जाता है
क्यों त्याग-तपस्या स्वेच्छा से करते थे पहले लोग
पहेली का रहस्य अब साफ समझ में आता है।

(रचनाकाल : 4 दिसंबर 2025)

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