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Showing posts from July, 2025

कृत्रिम विकास से लुप्त हुए सहज ज्ञान को लौटा सकता है एआई !

 इजराइल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक अद्‌भुत खोज की है. उन्होंने दुनिया में पहली बार यह प्रमाणित किया है कि पौधों की आवाज को कीड़े सुन सकते हैं. पौधों से निकलने वाली ध्वनियों से उन्हें पता चलता है कि कौन से पौधे स्वस्थ हैं और कौन से बीमार, फिर उसी आधार पर अंडे देते हैं. अध्ययन के दौरान दो साल पहले जूलॉजी स्कूल के प्रोफेसर योसी योवेल और प्लांट साइंसेज एंड फूड सिक्योरिटी स्कूल की प्रोफेसर लीलाश हादानी ने पहली बार रिकॉर्ड किया कि स्वस्थ पौधे एक घंटे में एक बार पॉपकॉर्न जैसी ‘क्लिक’ ध्वनि निकालते हैं, जबकि तनावग्रस्त पौधे दर्जनों क्लिक निकालते हैं.   धरती पर जैविक विकास क्रम में हम मनुष्य शायद सबसे पुराने जीव हैं क्योंकि हमारा दिमाग सबसे जटिल चीज है. यह जटिलता अरबों वर्षों के विकास क्रम का ही नतीजा हो सकती है और यदि कभी हम डिकोड करने की क्षमता हासिल कर सके तो शायद जीवन की शुरुआती अवस्था का पता भी लगाया जा सकता है. जाहिर है कि मनुष्य का रूप हमने कुछ लाख वर्ष पहले ही पाया है, उसके पहले न जाने कितने तरह के शारीरिक बदलावों से होकर गुजरे होंगे! अगर आज कीड...

साधन और साध्य

जो हमको अच्छा लगता है सबको उसमें शामिल करने की कोशिश करने लगते हैं पर सुख देने के चक्कर में कैसे दु:ख देने लगते हैं? जो धर्म बदलते लोगों का वो भला चाहते होंगे, पर जब जबरन ऐसा करते हैं क्या नहीं धर्म को अपने कलुषित करते हैं? जो अपने शासन की सीमा युद्धों के बल पर विस्तृत करते रहते हैं वे भले स्वयं को शासक समझें सर्वोत्तम पर मानवता से नीचे गिरकर पशुबल को क्या नहीं श्रेष्ठतर साबित करते चलते हैं? जो हमको अच्छा लगता है वह फैलाना तो मानवीय गुण होता है फिर ‘अच्छा’ करने के चक्कर में ‘बुरा’ भला क्यों होता है? जड़ इसकी शायद छिपी हुई है तौर-तरीकों के भीतर ‘दुश्मन’ को जब हिंसा से जीता जाता है तब दोनों हारा करते हैं खुद सहकर लेकिन कष्ट अहिंसा को जब हम हथियार बनाया करते हैं तब दोनों जीता करते हैं! रचनाकाल : 22-23 जुलाई 2025

जनता से कटते नेताओं की मोटी होती चमड़ी और खत्म होती संवेदना

 हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नीट-यूजी से जुड़े एक मामले में 13 मिनट तक अंधेरे में सुनवाई की. दरअसल इंदौर में नीट-यूजी में बैठे 75 छात्रों ने शिकायत की थी कि परीक्षा के दौरान बारिश के चलते बिजली चली गई थी, जिससे अंधेरे में वे ठीक से परीक्षा नहीं दे पाए. वहीं प्रतिवादी के वकील का कहना था कि जिन शहरों में आपदा आई, वहां के छात्र भी अच्छे अंकों से पास हुए, इसलिए याचिका खारिज की जानी चाहिए. इस पर जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने कहा कि हम देखना चाहते हैं अंधेरे में काम होता है या नहीं, इसलिए लाइट बंद कर दीजिए. और इस तरह कोर्ट की सुनवाई अंधेरे में चली.  परिस्थिति को सटीक ढंग से समझने के लिए पुलिस जैसे सीन रिक्रिएट करती है, यह कुछ-कुछ वैसा ही है. हाल ही में इंदौर के बहुचर्चित राजा रघुवंशी हत्याकांड में भी हमने ऐसा होते देखा है. अदालतें कई बार यह तरीका अपनाती हैं. इंदौर में एक जिला जज ने मारपीट के मामले में एक व्यापारी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. तब हाईकोर्ट ने कोर्ट रूम में सीसीटीवी रिकॉर्डिंग देखने के बाद व्यापारी को राहत दी थी.  यह प्रक्रिया दरअसल सहानुभूति का ही एक रूप है. जब ...

‘नॉनवेज’ दूध : लालच की पराकाष्ठा और सभ्यताओं के बीच का फर्क

 भारत प्राचीनकाल से पशुपालक देश रहा है और गौ माता हमेशा से पूजनीय रही है (यह बात अलग है कि पिछली शताब्दियों में कुछ लालची लोगों ने ज्यादा दूध निकालने के लिए गायों के साथ क्रूरता बरतनी शुरू कर दी, जिससे गांधीजी ने गाय का दूध ही नहीं पीने की प्रतिज्ञा कर डाली थी). दुनिया में ऐसे दूध को भी कभी ‘नॉनवेज’ बना दिया जाएगा, यह बात शायद अधिकांश भारतीय सपने में भी नहीं सोच सकते थे. लेकिन आज यह कोई कल्पना नहीं बल्कि क्रूर हकीकत है. अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में गायों को खिलाए जाने वाले चारे के रूप में सस्ते प्रोटीन के लिए सुअर, मुर्गी, मछली, घोड़े की चर्बी और खून का इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसी गायों से मिलने वाला दूध ‘नॉनवेज मिल्क’ कहलाता है. इन दिनों अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता में वहां के सनकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस दूध को भारत में खपाने की मांग पर अड़े हुए हैं. हालांकि भारत ने सख्त लहजे में अमेरिका से कह दिया है कि ऐसे दूध या डेयरी उत्पादों को भारत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती, लेकिन ट्रम्प के ढीठ स्वभाव को देखते हुए यह आशंका निराधार नहीं है कि वे आसानी से हार ...

अतिरिक्त नहीं कुछ पल भी

जब छोटा था तब बड़े-बड़ों से अपनी तुलना करता था लगता था मेरे पास अधिक है समय सभी से काम अधिक कर जाऊंगा दुनिया में अपना नाम अधिक कर जाऊंगा। इसी गफलत में लेकिन इतने ज्यादा वर्षों तक रह गया कि जब आ गया बुढ़ापा सहसा तब महसूस हुआ जीवन अमूल्य तो मैंने यूं ही गंवा दिया! अब बचे-खुचे जो दिन हैं उनसे भरपाई करने की कोशिश करता हूं पीढ़ी जो आती नयी, उसे समझाता हूं अतिरिक्त नहीं हैं पास तुम्हारे कुछ पल भी जीवन तो सारा अभी पड़ा है आगे यदि यह सोच गंवा दोगे तुम अपने कुछ दिन भी तो आखिर में बस पछताते रह जाओगे तुम भार उठा सकते हो सारी दुनिया का पर दुनिया पर बन भार सिर्फ रह जाओगे! रचनाकाल : 15 जुलाई 2025

पाने वाले के कद के हिसाब से घटती-बढ़ती पुरस्कारों की गरिमा

 पुरस्कारों के बारे में आम धारणा यही है कि वे योग्यता के आधार पर दिए जाते हैं (हालांकि छुटभैये पुरस्कारों  का ‘लेन-देन’ जगजाहिर है) लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नोबल पुरस्कार पाने की बेकरारी से सवाल पैदा हो रहा है कि क्या इसे सत्ता के बल पर भी हथियाया जा सकता है?  ट्रम्प को शांति का नोबल पुरस्कार दिलाने के लिए दुनिया में लॉबिंग तेज होती जा रही है. पाकिस्तान के बाद इजराइल ने भी ट्रम्प को नोबल देने की मांग की है. कई अन्य राष्ट्र भी ट्रम्प की चापलूसी में लगे हैं. ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने उन्हें किंग चार्ल्स का शाही आमंत्रण पत्र दिया तो कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने ट्रम्प के ‘व्यक्तिगत नेतृत्व’ की खुलकर प्रशंसा की. नाटो महासचिव मार्क रूट ने भी उनकी सराहना की है.  यह चापलूसी अकारण नहीं है. आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान को अमेरिका से आर्थिक मदद की आस है. इजराइल को तो अमेरिकी मदद जगजाहिर है ही, कनाडा भी भारी-भरकम अमेरिकी टैरिफ से बचने की कोशिश में लगा है. यूरोपीय देश रूस की वक्र-दृष्टि से बचने के लिए ट्रम्प की कृपा-दृष्टि चाहते हैं...

शुतुरमुर्ग

मैं नहीं देख पाता हूं कष्ट किसी का फोटो छपती है जब भूखे मरते बच्चों की या बम-गोलों से छलनी होते लोगों की तब व्याकुल होने लगता हूं। इसलिये न्यूज चैनल मैं कम ही देखा करता हूं फिल्मों, रीलों, धारावाहिक या अन्य मनोरंजन में खुद को व्यस्त हमेशा रखता हूं। मुझको दुनिया में युद्धों से डर लगता है इसलिये दूर मारा-मारी से रहता हूं ओटीटी पर सीरीज न जाने कितनी हैं मैं राजनीति से दूर, मगन बस स्मार्टफोन में रहता हूं! रचनाकाल : 11 जुलाई 2025

बढ़ती प्रौद्योगिकी और घटती मनुष्यता से पैदा होता खतरा

 हम मनुष्यों के भीतर जो भी विशेषता होती है, उसका मूल हमारे डीएनए में होता है. इसी में हमारी सारी आनुवंशिक जानकारी छिपी होती है. इसे कृत्रिम तौर पर किसी प्रयोगशाला में बनाना अभी तक लगभग असंभव माना जाता था, लेकिन वैज्ञानिकों ने अब इसकी भी कोशिश शुरू कर दी है. दुनिया की सबसे बड़ी मेडिकल चैरिटी संस्था ‘वेलकम ट्रस्ट’ ने इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए शुरुआती तौर पर एक करोड़ पाउंड (करीब 115 करोड़ रुपए) दिए हैं. ट्रस्ट का कहना है कि इस तरह के प्रयोग से कई गंभीर बीमारियों के इलाज में तेजी आ सकती है, लोग स्वस्थ जीवन जी सकेंगे और उम्र बढ़ने के साथ शरीर में बीमारियां भी कम होंगी. हालांकि परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट का काम टेस्ट ट्यूब तक ही सीमित रहेगा और कृत्रिम तौर पर किसी को जन्म देने की कोशिश नहीं की जाएगी. लेकिन एक बार कृत्रिम डीएनए बनाने में कामयाबी मिल जाने के बाद, गलत लोग अगर इस तकनीक से जैविक हथियार, उन्नत मानव और यहां तक ​​कि इंसानी डीएनए वाले अन्य जीव बनाने की कोशिश करेंगे तो उन्हें कौन रोक पाएगा? जिन्न को बोतल से बाहर निकालना जितना आसान है, उसे वापस उ...

ये वो मंजिल तो नहीं!

अद्‌भुत थी हम इंसानों के भीतर क्षमता कर पाते उसका सदुपयोग तो देवों से भी आगे अब तक बढ़ जाते होकर सम्पन्न धरा यह अद्‌भुत बन जाती पर नजर न जाने कैसी यह लग गई कि असुरों से भी नीचे मानवता गिर गई कर्ज धरती का तो रह गया चुकाना दूर खोखला करके मरणासन्न उसे कर दिया बना सकते थे जिसको अमृत विष में परिवर्तित कर दिया नियति हम इंसानों की इतनी ज्यादा बुरी तो नहीं होनी थी! रचनाकाल : 06 जुलाई 2025

अनुशासन का अंकुश

जब सामूहिक दु:ख आता है तब मिल-जुलकर हम रहते हैं फिर आम दिनों में ही क्यों हरदम लड़ते-भिड़ते रहते हैं? परतंत्र रहे जब देश भाव तब देशभक्ति का जगता है मिलते ही आजादी लेकिन क्यों भ्रष्टाचार पनपता है? यह सच है जब भी बाढ़ नदी में आती है तब सांप-नेवले एक पेड़ पर रहते हैं पर हम मानव भी क्या केवल दु:ख-कष्टों से ही डरते हैं? हे ईश्वर, हम इंसानों को जब सुख देना, तब अनुशासन भी दे देना पर सीख न पायें अपने अंकुश में रहना तो देकर दु:ख तुम अपने अंकुश में रखना! hemdhar.blogspot.com रचनाकाल : 01 जुलाई 2025

जनता से कटते नेताओं की मोटी होती चमड़ी और खत्म होती संवेदना

 हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नीट-यूजी से जुड़े एक मामले में 13 मिनट तक अंधेरे में सुनवाई की. दरअसल इंदौर में नीट-यूजी में बैठे 75 छात्रों ने शिकायत की थी कि परीक्षा के दौरान बारिश के चलते बिजली चली गई थी, जिससे अंधेरे में वे ठीक से परीक्षा नहीं दे पाए. वहीं प्रतिवादी के वकील का कहना था कि जिन शहरों में आपदा आई, वहां के छात्र भी अच्छे अंकों से पास हुए, इसलिए याचिका खारिज की जानी चाहिए. इस पर जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने कहा कि हम देखना चाहते हैं अंधेरे में काम होता है या नहीं, इसलिए लाइट बंद कर दीजिए. और इस तरह कोर्ट की सुनवाई अंधेरे में चली.  परिस्थिति को सटीक ढंग से समझने के लिए पुलिस जैसे सीन रिक्रिएट करती है, यह कुछ-कुछ वैसा ही है. हाल ही में इंदौर के बहुचर्चित राजा रघुवंशी हत्याकांड में भी हमने ऐसा होते देखा है. अदालतें कई बार यह तरीका अपनाती हैं. इंदौर में एक जिला जज ने मारपीट के मामले में एक व्यापारी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. तब हाईकोर्ट ने कोर्ट रूम में सीसीटीवी रिकॉर्डिंग देखने के बाद व्यापारी को राहत दी थी.  यह प्रक्रिया दरअसल सहानुभूति का ही एक रूप है. जब ...