साधन और साध्य

जो हमको अच्छा लगता है
सबको उसमें शामिल करने की
कोशिश करने लगते हैं
पर सुख देने के चक्कर में
कैसे दु:ख देने लगते हैं?
जो धर्म बदलते लोगों का
वो भला चाहते होंगे, पर
जब जबरन ऐसा करते हैं
क्या नहीं धर्म को अपने कलुषित करते हैं?
जो अपने शासन की सीमा
युद्धों के बल पर विस्तृत करते रहते हैं
वे भले स्वयं को शासक समझें सर्वोत्तम
पर मानवता से नीचे गिरकर
पशुबल को क्या नहीं श्रेष्ठतर
साबित करते चलते हैं?
जो हमको अच्छा लगता है
वह फैलाना तो मानवीय गुण होता है
फिर ‘अच्छा’ करने के चक्कर में
‘बुरा’ भला क्यों होता है?
जड़ इसकी शायद छिपी हुई है
तौर-तरीकों के भीतर
‘दुश्मन’ को जब हिंसा से जीता जाता है
तब दोनों हारा करते हैं
खुद सहकर लेकिन कष्ट
अहिंसा को जब हम हथियार बनाया करते हैं
तब दोनों जीता करते हैं!

रचनाकाल : 22-23 जुलाई 2025

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