अतिरिक्त नहीं कुछ पल भी

जब छोटा था तब बड़े-बड़ों से
अपनी तुलना करता था
लगता था मेरे पास अधिक है समय
सभी से काम अधिक कर जाऊंगा
दुनिया में अपना नाम अधिक कर जाऊंगा।
इसी गफलत में लेकिन इतने ज्यादा
वर्षों तक रह गया
कि जब आ गया बुढ़ापा
सहसा तब महसूस हुआ
जीवन अमूल्य तो मैंने यूं ही गंवा दिया!
अब बचे-खुचे जो दिन हैं
उनसे भरपाई करने की कोशिश करता हूं
पीढ़ी जो आती नयी, उसे समझाता हूं
अतिरिक्त नहीं हैं पास तुम्हारे कुछ पल भी
जीवन तो सारा अभी पड़ा है आगे
यदि यह सोच गंवा दोगे तुम अपने कुछ दिन भी
तो आखिर में बस पछताते रह जाओगे
तुम भार उठा सकते हो सारी दुनिया का
पर दुनिया पर बन भार सिर्फ रह जाओगे!

रचनाकाल : 15 जुलाई 2025

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