त्रासदी
है अजब त्रासदी दुनिया की करते तो हैं हम काम खूब पर अपने मन का कभी नहीं कर पाते हैं ! नौकरी छोड़ती है जब तक पीछा, तब तक बूढ़े या फिर इतना निर्बल हो जाते हैं सपने या तो मर जाते हैं या सपने ही रह जाते हैं! कितना सुंदर हो यदि सबको दुनिया में अपने-अपने मन का काम मिले खिलते हैं जैसे फूल ढंग से अपने सब इंसान सभी हम भी अपनी ही तरह खिलें! इससे बढ़कर क्या हो सकती है विडंबना जीवन भर, भरने खातिर पेट जिया करते हासिल कुछ किये बिना दुनिया में आखिर में मर जाते हैं ! रचनाकाल : 25 नवंबर 2023