सुखी जीवन का मंत्र
मैं नहीं चाहता था कि भयावह अतल घाटियों में भटकूं लेकिन यह इच्छा थी कि शिखर तक भी पहुंचूं यह काम असंभव जैसा था जितना ऊंचा होता जाता है पेड़ जड़ें उतनी ही गहरी जाती हैं मजबूत नींव के बिना नहीं संभव है आलीशान इमारत बन पाना। इसलिये सुखी रह पाने की खातिर हरदम कुछ ऐसा मैंने ढंग निराला खोज लिया मन ही मन सारी पीड़ा को सह लेता हूं बाहर कायम रह सके ताकि सुख-शांति झेलना पड़े न कोई असहनीय आघात सभी को होता है किस्मत पर मेरी रश्क छुपा लेता हूं मैं अपने सारे दु:ख-दर्द जड़ें जब तक मिट्टी में दबी रहेंगी पोषण पाकर वृक्ष फले-फूलेगा जिस दिन मिट्टी हट जायेगी जड़ की क्षमता तो जायेगी दुनिया जान मगर जो दिखता आलीशान वृक्ष वह बिना जड़ों के जमींदोज हो जायेगा। रचनाकाल : 26-28 मार्च 2024