प्रतिदान
कुछ लोग मिले थे जीवन में
नि:स्वार्थ जिन्होंने मुझसे प्रेम अथाह किया
करके समाज की सेवा मैं अनवरत
अक्षय वह कर्ज उतारा करता हूं।
कविता लिखना जब शुरू किया
सोचा था जीवन-यापन का जरिया होगी
मन को समृद्ध बनाया पर इसने इतना
अब स्वार्थ साधने में लज्जा सी होती है।
जिन दु:ख-तकलीफों की खातिर
ईश्वर को कोसा करता था
उन कष्टों ने ही मांज-मांज कर इतना मुझको चमकाया
अब स्वेच्छा से दु:ख सह ईश्वर से माफी मांगा करता हूं।
रचनाकाल : 15 मार्च 2024
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