अच्छाई की खेती

 विपदाएं आएं लाख सही
टूटे धरती या आसमान
मैं नहीं चाहता दामन छोड़ूं आशा का
प्रत्येक परिस्थिति में अपने जीवन की लौ
दीपक के जैसी रखूं हमेशा ऊपर ही
बस यही लक्ष्य नजरों में हरदम रहता है।
महसूस किया है अक्सर यह
निंदा या आलोचना किसी की
करने-सुनने वाले दोनों के मन में
पैदा करती हैै भाव नकारात्मकता का
कलुषित आनंद क्षणिक मिल जाये चाहे पर
वे नहीं सहायक होते आगे बढ़ने में।
इसलिये ढूंढ़ता हूं मैं हरदम
सबके भीतर अच्छाई
चिंता करता हूं नहीं कि कोई
अतिशयोक्ति का दोष लगायेगा मुझ पर
खुल कर करता हूं सबके गुण की सराहना
अद्भुत है यह अगले ही दिन पाता हूं वह
गुण पहले से भी बढ़ जाता है कई गुना।
मैं नहीं चाहता बनना न्यायाधीश
नहीं है काम मेरा दण्डित करना
हिस्सा हूं मैं मानवता का
समृद्ध उसे ज्यादा से ज्यादा करूं 
सभी की अच्छाई फल-फूल सके
कोशिश में बस दिन-रात इसी मैं रहता हूं
अच्छाई बोकर फसल काटता हूं ढेरों अच्छाई की।
रचनाकाल : 22-26 जून 2021

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