ऐच्छिक-अनैच्छिक का फर्क


जो सरल दिखाई देता था
मैं अक्सर मार्ग वही जीवन में चुनता था
सहना पड़ता था दु:ख जब भी
मजबूरी में ही सहता था।
स्वेच्छा से लेकिन जब से दु:ख का वरण किया
वह नहीं भयानक पहले जैसा लगता है
सुख भी अब बिन मांगे ही खुद ही मिलता है।
दु:ख-सुख तो जीवन में अब भी उतना ही है
पहले जो मजबूरी में सहकर गरिमा खोनी पड़ती थी
स्वेच्छा से सहकर उसको कायम रखता हूं
इतने भर से ही लेकिन मुझको जीवन में
धरती और आसमान जितना
महसूस फर्क अब होता है!

रचनाकाल : 8 जून 2025

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