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Showing posts from June, 2025

सभ्यता और बर्बरता

दीवाली में जब फोड़ा करते थे अनार या सुतली बम हम बच्चों को आतिशबाजी में मजा बहुत ही आता था तब नहीं जान पाये थे कभी भयावह सच दुनिया में जानें लेने खातिर भी बम फोड़े जाते हैं! टीवी पर जब देखा करते नायक को मारकाट करते तब जोश भुजाओं में हम बच्चों के भी आ ही जाता था सोचा ही था तब नहीं कि असली दुनिया में जो खून बहाया जाता, इतना अधिक भयानक होता है! होता था हमको गर्व बहुत, यह लगता था हम मानव सबसे सभ्य, विश्व में होते हैं पर देख भयानक युद्धों को, अब बच्चे पूछा करते हैं क्या सभ्य लोग भी इतने बर्बर होते हैं!   रचनाकाल : 19 जून 2025

निहित स्वार्थों की जंग का खामियाजा भुगतती जनता

  पंचतंत्र में एक कहानी है कि गीदड़ दमनक जब बैल संजीवक और सिंह पिंगलक की दोस्ती से खुद को उपेक्षित महसूस करने लगा तो उसने उनमें फूट डालने की कोशिश की. एक तरफ तो उसने पिंगलक से कहा कि संजीवक उसका राज्य हड़पने की योजना बना रहा है, दूसरी तरफ संजीवक को भड़काया कि जंगल का राजा उसे मारकर खा जाना चाहता है. नतीजतन, गलतफहमी के शिकार दोनों मित्रों का जब आमना-सामना हुआ तो उनकी आंखें क्रोध से लाल थीं और नथुने फूले हुए थे. एक-दूसरे को देखकर उन्हें पक्का विश्वास हो गया कि सियार दमनक ने बिल्कुल सही कहा था और वे बिना सोचे-विचारे ही एक-दूसरे पर टूट पड़े.  ईरान और इजराइल के बीच इन दिनों भीषण युद्ध छिड़ा हुआ है. ईरान कहता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों (बिजली आदि) के लिए है तो दूसरी ओर इजराइल को लगता है कि इसके बहाने ईरान परमाणु हथियार बना रहा है, जो उसके (इजराइल के) अस्तित्व को ही खतरे में डाल देंगे. मजे की बात यह है कि हम जैसी धारणा बना लेते हैं, चीजें हमें वैसी ही नजर आने लगती हैं. जैसे हम मनुष्य सांप से डरते हैं और सांप हम मनुष्यों से तथा मौका पाते ही दोनों पहले वार करना च...

मध्यम वर्ग

थी बहुत पुरानी इच्छा सैर-सपाटे की आकर्षित करते थे पहाड़, जंगल, नदियां फुर्सत ही लेकिन नहीं कभी भी मिल पाई नौकरी हमेशा करते जीवन बीत गया आना-जाना बस गांव-शहर ही लगा रहा। सोचा था जब नौकरी खत्म हो जायेगी लौटूंगा अपने गांव, संवारूंगा उसको पर नहीं शहर से कभी रिटायर हो पाया कम्बल समझा था जिसे, उसी ने भालू जैसा जकड़ लिया सेवा करना अम्मा-बाबू की सपना ही बस बना रहा। आती थी भरकर रेल गांव से रोज, मगर बीमारी से लाचार लोग ही दवा कराने आते थे हसरत होती थी उन्हें, शहर में उनका भी इक घर होता जीवन की अपनी सारी लगा जमा-पूंजी जब प्लॉट कहीं वे ले लेते, हिम्मत मेरी भी नहीं लौटने की होती। बस इसी कशमकश में ही जीवन गुजर गया सपना था जो वह सपना ही बस बना रहा सिलसिला न जाने चला आ रहा है कब से कम्बल छोटा है, सिर ढकने पर पैर उघड़ ही जाता है क्या इसी त्रासदी में ही मध्यम वर्ग हमेशा जीता है! रचनाकाल : 06-09 जून 2025

मिल-जुलकर काम करने और फरमान जारी करने का फर्क

 पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल एक ऑडियो क्लिप में तेलंगाना सोशल वेलफेयर रेजिडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस सोसाइटी की एक सीनियर अफसर प्रिंसिपलों को छात्रों से टॉयलेट, हॉस्टल रूम और किचन की सफाई कराने के निर्देश देती सुनाई दे रही थीं. इस पर विवाद खड़ा होने के बाद विपक्षी पार्टी बीआरएस ने जहां अफसर को हटाने की मांग कर डाली, वहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर रिपोर्ट मांगी. एक दूसरी खबर गुजरात के सूरत से है, जहां महेश पटेल नामक सज्जन हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती माध्यम में ऐसा स्कूल चला रहे हैं, जहां नैतिकता सिखाई जाती है. इन स्कूलों में पढ़ने वाले 3500 बच्चों से कोई गलती होने पर शिक्षक उन्हें डांटते या मारते नहीं हैं बल्कि प्रिंसिपल खुद को सजा देते हैं. जैसे एक बार जब बच्चे गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने स्कूल नहीं आए तो अगले दिन से प्रिंसिपल नंगे पैर स्कूल आने लगे. यह देख बच्चे भी बिना जूतों के स्कूल आने लगे और सभी शिक्षकों से माफी मांगी. इस स्कूल में उन सभी बच्चों को प्रवेश मिल जाता है जिन्हें शरारतों और पढ़ाई में...

ऐच्छिक-अनैच्छिक का फर्क

जो सरल दिखाई देता था मैं अक्सर मार्ग वही जीवन में चुनता था सहना पड़ता था दु:ख जब भी मजबूरी में ही सहता था। स्वेच्छा से लेकिन जब से दु:ख का वरण किया वह नहीं भयानक पहले जैसा लगता है सुख भी अब बिन मांगे ही खुद ही मिलता है। दु:ख-सुख तो जीवन में अब भी उतना ही है पहले जो मजबूरी में सहकर गरिमा खोनी पड़ती थी स्वेच्छा से सहकर उसको कायम रखता हूं इतने भर से ही लेकिन मुझको जीवन में धरती और आसमान जितना महसूस फर्क अब होता है! रचनाकाल : 8 जून 2025

पीढ़ियों के बीच पुल

जब नहीं जानता था ज्यादा दुनियादारी था नहीं आत्मविश्वास, बोलने में हकलाया करता था पर धीरे-धीरे सीख लिया, पटु वक्ता भी बन गया मगर महसूस हुआ, जो नहीं जानते हैं ज्यादा दुनियादारी बातें करते मुझसे हकलाया करते हैं। वे सहज बनें, पा सकें आत्मविश्वास इसलिये बातें उनसे करता जब थोड़ा हकलाया करता हूं नादानी थोड़ी अपने भीतर लाकर यूं नादानों में भी घुल-मिल जाया करता हूं। रचनाकाल : 25 फरवरी-4 जून 2025

अपनी ही लगाई आग में झुलसते देश और दुनिया में गहराता अंधेरा

 जो अमेरिका पूरी दुनिया में लड़ाइयों के लिए बदनाम रहा है, अब उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने देश की सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए ‘गोल्डन डोम’ के निर्माण की घोषणा की है. इजराइल के ‘आयरन डोम’ से लोग  सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि गोल्डम डोम क्या बला है. सवाल यह है कि दुनिया के चौधरी अमेरिका को क्या सचमुच किसी से इतना ज्यादा खतरा है या वह काल्पनिक भय के चलते 175 अरब डॉलर हथियारों के भाड़ में झोंक रहा है? पिछली सदी के पांचवें-छठवें दशक में जब शीतयुद्ध चरम पर था, दुनिया इसी तरह परमाणु युद्ध के साये में जिया करती थी. द्विध्रुवीय दुनिया के दोनों शिखर देशों- अमेरिका और सोवियत रूस के बीच अधिक से अधिक परमाणु हथियारों के निर्माण की होड़ लगी थी. इतिहास के पन्नों में झांकें तो आप पाएंगे कि गलतफहमियों के चलते कई बार ऐसे मौके आए थे जब दुनिया परमाणु युद्ध की आग में स्वाहा होने से बाल-बाल बची थी. हास्यास्पद बात यह कि पूरी दुनिया को खत्म करने के लिए महज कुछ सौ परमाणु बम ही काफी थे, फिर भी दोनों देश हजारों बम बनाए जा रहे थे. बाद में संबंधों में जब कुछ सुधार आया तो संधि हुई कि दोनों देश ...