मशीनों के मनुष्य बनने की आशा और मनुष्यता के खात्मे की आशंका

 आर्टिफियल इंटेलिजेंस (एआई) से पैदा वाले खतरों की आशंकाओं के बीच अब एआई ने ही चेतावनी दी है कि यह मानवता को हमेशा-हमेशा के लिए नष्ट कर सकता है. गूगल की एआई रिसर्च कंपनी डीपमाइंड ने एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि इंसानों जैसी आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआई) 2030 तक विकसित हो सकती है और अगर इसे सही तरीके से नहीं संभाला गया तो यह मानवता को हमेशा के लिए खत्म कर सकती है. 

एजीआई के बारे में कहा जा रहा है कि यह इंसानों की ही तरह सोचेगा, सीखेगा और अपने फैसले खुद ले सकेगा. आज के एआई को हर नए टास्क के लिए फिर से ट्रेन करना पड़ता है, जबकि एजीआई बिना दोबारा प्रोग्राम किए खुद ही नए काम सीख सकेगा. यह जटिल परिस्थितियों में भी इंसानों जैसी सोच व समझ के आधार पर फैसले ले सकेगा. सम्पन्न मनुष्यों को हमेशा से दूसरों की सेवा की जरूरत पड़ती रही है. गुलामी प्रथा खत्म हुए भी अभी बहुत समय नहीं बीता है. राजा-महाराजाओं का काम दास-दासियों के बिना नहीं चलता था. ऐसा नहीं है कि कुछ सौ साल पहले की तुलना में हम मनुष्य आज इतने ज्यादा विवेकशील हो गए हैं कि अपने जैसे ही दूसरे मनुष्यों को गुलाम बनाकर रखना मानवता के खिलाफ समझने लगे हैं. हकीकत यह है कि गुलामों द्वारा किए जाने वाले कार्यों को तकनीकी विकास के चलते मशीनों से करवाना ज्यादा सस्ता पड़ने लगा है. न तो वे बीमार पड़ती हैं, न खाना-कपड़ा मांगती हैं, न बूढ़ी होकर बोझ बनती हैं. 

लेकिन आज भी कई काम ऐसे हैं जिन्हें मशीनों के मुकाबले मनुष्य ही ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकते हैं. इसीलिए कंपनियों या कल-कारखानों को मनुष्यों से काम लेना पड़ता है, कर्मचारी नियुक्त करने पड़ते हैं और उन्हें सम्मानजनक वेतन व भत्ते भी देने पड़ते हैं. बकौल डीपमाइंड, 2030 या उसके आसपास तक, जब आज का एआई एजीआई बन जाएगा, अर्थात इंसानों की तरह सोचने-समझने और सारा काम करने लगेगा तो इंसान के नियंत्रण के बाहर अगर नहीं भी गया, तब भी क्या उस पर नियंत्रण रखने वालों को कर्मचारी के रूप में इंसानों को रखने के बजाय एजीआई से काम लेना ज्यादा फायदेमंद नहीं लगेगा? तकनीकी विकास ने जिस तरह दास प्रथा को खत्म किया, उसी तरह एजीआई का विकास क्या कर्मचारी प्रथा का खात्मा नहीं कर देगा? पुराने जमाने में जिस घर में जितने जोड़ी बैल होते, वह उतना ही समृद्ध माना जाता था. विपन्न ग्रामीणों को भी गाय का दूध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता था. लेकिन कुछ दशक के भीतर ही समय इतनी तेजी से बदला कि मशीनों ने कृषि कार्यों से गोवंश को बेदखल कर दिया और गांवों में अब वे मारे-मारे घूमते हैं. जो लोग ग्राम्य जीवन से परिचित हैं वे जानते हैं कि तकनीकी सुविधा के बावजूद, आवारा मवेशियों के उपद्रव के कारण खेती करना अब कितना कठिन हो चला है. कल-कारखानों में जब कर्मचारियों का स्थान अत्यधिक बुद्धिमान एजीआई ले लेगा तो क्या आम इंसानों की भी आवारा मवेशियों जैसी हालत होने की नौबत नहीं आ जाएगी?  एजीआई जब मनुष्यों के नियंत्रण से बाहर हो जाएगा तब की तो बात सोचना ही बेमानी है, लेकिन नियंत्रण में रहकर भी वह क्या गुल खिलाएगा, क्या हम इसकी कल्पना कर पा रहे हैं? आज चोटी के एक प्रतिशत अमीरों के पास दुनिया की 90 प्रतिशत से अधिक संपदा होने की बात हमें हैरान करती है लेकिन एजीआई के बल पर जब 0.01 प्रतिशत लोगों के पास दुनिया की 99.99 प्रतिशत संपदा होगी, तब क्या एआई के खत्म किए बिना ही मानवता खत्म नहीं हो जाएगी? 

(7 मई 2025 को प्रकाशित)

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक