हिंसा और अहिंसा


होता है अचरज गहन
कि इतनी हिंसक क्यों है दुनिया
कुत्ते खाते हैं बिल्ली को
बिल्ली खा जाती है चूहा
शेरों का भोजन है हिरन
बिना हिंसा के क्या
यह सृष्टि नहीं चल सकती थी?
जंगल का ऐसा भले रहे कानून
मगर हम इंसानों ने
क्यों इसको स्वीकार किया
क्यों नहीं हमें करुणा ऐसी
हिंसा से विचलित करती थी?
है नहीं विरासत से मुझको इनकार
मगर व्याकुल करता है खून भरा इतिहास
बिना क्या रक्तपात के मानवता की
होनी प्रगति असम्भव थी?
डर लगता नहीं जरा भी
दे देने में अपनी जान
मगर औरों की लेना जान
मुझे मरणांतक पीड़ा देता है
हूं परम भाग्यशाली
कि खोजनी नहीं मुझे नई राह
दिया गांधीजी ने सत्याग्रह का हथियार
उसी के बल पर पूरी
ताकत से लड़ सकता हूं।
हो भले मनुष्येतर जीवों का
बर्बर शक्ति विधान
मगर मानवता उससे
कभी नहीं बढ़ सकती है
हिंसा करती सब खत्म
अहिंसा में ही क्षमता
नया सृजन करने की है।
रचनाकाल : 18 अगस्त 2024

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